अवैध कब्जों पर कार्रवाई पर हरदा के सवाल, बोले, "मजार शरणम् गच्छामि' हैं मुख्यमंत्री धामी

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अवैध कब्जों पर कार्रवाई पर हरदा के सवाल, बोले, "मजार शरणम् गच्छामि' हैं मुख्यमंत्री धामी

harish rawat pushkar dhami

हरीश रावत ने कहा कि  मेरी सलाह है कि आरक्षित वन क्षेत्र के अंदर अवैध कब्जों को हटाइए। मगर उसको राजनीतिक मुद्दा न बनाइए और किन-किन ऐसे स्थानों को आप अवैध मान रहे हैं उसका एक ब्यौरा राज्य के लोगों के सम्मुख रखिए, आधुनिक सभ्यता के इस भू-भाग में प्रारंभ होने के साथ कुछ धुणिया और कुछ गुफाएं संतों की तपस्थली के रूप में आज भी पूजी जाति हैं, उन्हें तो कोई पागल ही अवैध कब्जा बताएगा।


 

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक बार फिर से राज्य की धामी सरकार पर निशाना साधा है। हरीश रावत ने खास तौर पर वन क्षेत्रों के अंदर अवैध कब्जों पर धामी सरकार की कार्रवाई को लेकर निशाना साधते हुए सवाल उठाए हैं।

हरीश रावत ने कहा कि  मेरी सलाह है कि आरक्षित वन क्षेत्र के अंदर अवैध कब्जों को हटाइए। मगर उसको राजनीतिक मुद्दा न बनाइए और किन-किन ऐसे स्थानों को आप अवैध मान रहे हैं उसका एक ब्यौरा राज्य के लोगों के सम्मुख रखिए, आधुनिक सभ्यता के इस भू-भाग में प्रारंभ होने के साथ कुछ धुणिया और कुछ गुफाएं संतों की तपस्थली के रूप में आज भी पूजी जाति हैं, उन्हें तो कोई पागल ही अवैध कब्जा बताएगा।

हरदा ने आगे कहा- आजादी की लड़ाई के दौरान भी कई ऐसे पूजा स्थल थे जिनको अंग्रेज हटाना चाहते थे! सन् 1920 के दशक के आस-पास कुमाऊं और गढ़वाल के अंदर अंग्रेजों के खिलाफ जो लड़ाई प्रारंभ हुई थी उसमें एक बड़ा कारण जंगलों में स्थापित पूजा स्थलों को हटाना भी था। पिछले कुछ दिनों से भाजपा के नेता इस तरीके से बयानबाजी कर रहे हैं जैसे अवैध मजारें एक पार्टी विशेष ने खड़ी की हैं! जो पूर्णतः गलत है।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि इस राज्य के बनने के बाद मैं इकलौता भूतपूर्व मुख्यमंत्री हूं जो कांग्रेस में है। मगर मेरे सहयोगी मंत्रीगण हैं, हम यह जानना चाहते है कि वर्ष 2000 के बाद कितनी ऐसी मजारें बनी या दूसरे धर्म के और पूजा स्थल बने हैं? आरक्षित वन क्षेत्र में जिन्हें आप अवैध बता रहे हैं, वर्षवार उनका ब्यौरा देने में और किन-किन स्थानों में हैं, यह बताने में आपको संकोच नहीं होना चाहिए!

हरदा आगे कहते हैं हम यह जानना चाहते हैं कि ऐसे कौन से बड़े-बड़े अवैध पूजा स्थल जो हमारे कार्यकाल में बने हैं, जबकि हममें से कोई भी अवैध निर्माण के साथ खड़ा नहीं है। मगर ब्यौरा मांगने का हक तो हमें है और मेरा आरोप है कि सर्वाधिक ऐसे अवैध निर्माण वन भूमि में भाजपा के ही शासन काल में ही हुए हैं और यही नहीं, मेरा यह भी आरोप है कि जो जनसंख्या असंतुलन का ढोल पीटा जा रहा है उसमें भी सबसे बड़ा कारक भाजपा सरकारों की शिथिलता रही है। आज भी देहरादून के नदी-नाले और खालों में सर्वाधिक अवैध निर्माण हो रहे हैं और लोग बसाये जा रहे हैं। भाजपा के कई विधायक अपने-अपने क्षेत्रों में ऐसे वोटर कार्ड बना रहे हैं जो हमारे पड़ोसी राज्यों में भी वोटर हैं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि 90 प्रतिशत ऐसे अवैध निर्माण और अवैध वोटर लिस्टें भाजपा के मंत्रियों, नेताओं के संरक्षण में तैयार हो रही हैं। भाजपा का सिद्धांत है, "झूठ बोलो, जोर से बोलो, बार-बार बोलो, सब मिलकर बोलो"।

पूर्व सीएम ने कहा कि धामी सरकार, मुस्लिम यूनिवर्सिटी के ऐसी ही झूठ के गर्भ से पैदा हुई है। उत्तराखंड के किसी भी मुसलमान भाई ने कभी न तो मुस्लिम यूनिवर्सिटी की मांग की, यहां तक कि कभी मुस्लिम डिग्री कॉलेज की भी मांग नहीं की, न कांग्रेस के किसी नेता ने मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाने की बात कही। मगर एक झूठ बोला शीर्ष से लेकर नीचे तक के सारे भाजपा नेतृत्व ने, एक ऐसे झूठ को प्रचारित-प्रसारित कर चुनाव जीत लिया।

हरदा ने कहा कि आप आज मजारों के बल पर नगरीय चुनाव जीतना चाहते हैं और लोकसभा की भूमिका बनाना चाहते हैं। सवाल जनता के बहुत खड़े हैं, बिजली, पानी, हाउस टैक्स, कानून व्यवस्था से लेकर महिला उत्पीड़,  दलितों, कमजोरों, पिछड़ों की छात्रवृत्ति,  किसानों की उपेक्षा, नल हैं मगर नल में पानी नहीं है, स्कूल में  टीचर नहीं, हॉस्पिटल में डॉक्टर नहीं, महंगाई चरम पर है और बेरोजगारी का आलम यह कि देश के सर्वाधिक बेरोजगारी का प्रतिशत आज उत्तराखंड में सबसे ज्यादा है और उस पर परीक्षा के पेपर लीक करने वाले उस्ताद भी भाजपाई हैं, अंकिता हत्याकांड में भी भाजपा के नेताओं का संलिप्त होने का संदेह है! भाजपा के पास इन सब सवालों का कोई जवाब नहीं है, इसलिये धामी अपने सारे राजनीतिक कुटुंब सहित मजार शरणम् गच्छामि हैं।

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