'समान नागरिक संहिता' एक सामान्य विधेयक नहीं है बल्कि भारत की ’’एकात्मता’’ का सूत्र है: धामी

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'समान नागरिक संहिता' एक सामान्य विधेयक नहीं है बल्कि भारत की ’’एकात्मता’’ का सूत्र है: धामी

Dhami CM

मेरा मानना है कि जो विधेयक हम लेकर आएं हैं वो एक सामान्य विधेयक नहीं है बल्कि भारत की ’’एकात्मता’’ का सूत्र है। हमारे संविधान शिल्पियों ने जिस अवधारणा की परिकल्पना की थी, देवभूमि उत्तराखंड से आज वही अवधारणा साकार रूप लेने जा रही है- धामी


 

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड विधानसभा में समान नागरिक संहिता बिल पर मुख्यमंत्री धामी संबोधिन दे रहे हैं। माना जा रहा है कि कुछ ही देर में समान नागरिक संहिता विधेयक विधानसभा में पास हो जाएगा। जिसके बाद इसे राज्यपाल के पास भेजा जाएगा और राज्यपाल के दस्तखत के साथ ही ये कानून बन जाएगा।

इसके साथ ही समान नागरिक संहिता लागू करने वाला उत्तराखंड पहला राज्य बन जाएगा। कानून बनने के बाद ये सभी लोगों पर लागू हो जाएगा। हालांकि, इस कानून के प्रावधान अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लोगों पर लागू नहीं होंगे।

मुख्यमंत्री धामी का विधानसभा में संबोधन-

आज मैं, आप सभी के समक्ष एक ऐतिहासिक विधेयक पर अपने विचार रखने के लिए उपस्थित हुआ हूं। सर्वप्रथम मैं, इस महत्वपूर्ण विधेयक पर हुई चर्चा में भाग लेने वाले सभी सदस्यों को धन्यवाद देता हूं”।

मेरा मानना है कि जो विधेयक हम लेकर आएं हैं वो एक सामान्य विधेयक नहीं है बल्कि भारत की ’’एकात्मता’’ का सूत्र है। हमारे संविधान शिल्पियों ने जिस अवधारणा की परिकल्पना की थी, देवभूमि उत्तराखंड से आज वही अवधारणा साकार रूप लेने जा रही है।

मैं आज इस अवसर पर सभी प्रदेशवासियों को बधाई देना चाहता हूँ, क्योंकि आज हमारे उत्तराखंड की विधायिका एक इतिहास रचने जा रही है।

आज इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनते हुए, न केवल इस सदन को बल्कि उत्तराखंड के प्रत्येक नागरिक को गर्व की अनुभूति हो रही है।

हमारी सरकार ने आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी के ’’एक भारत और श्रेष्ठ भारत’’ मंत्र को साकार करने के लिए उत्तराखण्ड में समान नागरिक संहिता लाने का वादा किया था। प्रदेश की देवतुल्य जनता ने हमें इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अपना आशीर्वाद देकर पुनः सरकार बनाने का मौका दिया। सरकार गठन के तुरंत बाद, पहली कैबिनेट की बैठक में ही समान नागरिक संहिता बनाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया।

उच्चतम न्यायालय की सेवानिवृत्त न्यायाधीश श्रीमती रंजना प्रकाश देसाई जी के नेतृत्व में पांच सदस्यीय समिति गठित की गई, देश के सीमांत गांव माणा से प्रारंभ हुई यह जनसंवाद यात्रा करीब नौ माह बाद 43 जनसंवाद कार्यक्रम करके नई दिल्ली में पूर्ण हुई।

2 लाख 32 हजार से अधिक सुझाव प्राप्त हुए। प्रदेश के लगभग 10 प्रतिशत परिवारों द्वारा किसी कानून के निर्माण के लिए अपने सुझाव दिए। हमारे प्रदेश की देवतुल्य जनता की जागरूकता का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

जिस प्रकार से इस देवभूमि से निकलने वाली मां गंगा अपने किनारे बसे सभी प्राणियों को बिना भेदभाव के अभिसिंचित करती है, इस सदन से निकलने वाली समान अधिकारों की ये गंगा हमारे सभी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों को सुनिश्चित करेगी।

हम हमेशा से कहते आएं हैं कि 'अनेकता में एकता, यही भारत की विशेषता’, यह बिल उसी एकता की बात करता है, जिस एकता का नारा हम वर्षों से लगाते आएं हैं।

आज हम आजादी के अमृतकाल में हैं और हम सभी का यह कर्तव्य है कि हम एक समरस समाज का निर्माण करें, जहां पर संवैधानिक प्रावधान, सभी के लिए समान हों।

जब हम समान मन की बात करते हैं तो उसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि हम सभी के कार्यों में एकरूपता हो बल्कि इसका अर्थ यह है कि हम सभी समान विचार और व्यवहार द्वारा विधि सम्मत् कार्य करें।

सामान नागरिक संहिता के विषय पर, मुझे यह कहते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि हमने जो संकल्प लिया था, आज इस सदन में उस संकल्प की सिद्धि होने जा रही है।

आज समय आ गया है कि हम, वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर, एक ऐसे समाज का निर्माण करें जिसमें हर स्तर पर समता हो। वैसी ही समता, जिसके आदर्श मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम हैं।

हमारी देवभूमि समानता से सभी का सम्मान करना सिखाती है, जैसे यहां के चार धाम और कई मंदिर हमारे लिए पूजनीय है, वैसे ही पिरान कलियर भी हमारे लिए एक पवित्र स्थान है।

हम उस सत्य की बात कर रहे हैं जिसे संविधान के अनुच्छेद 44 में होने के बावजूद अब तक दबा कर रखा। वही सत्य, जिसे 1985 के शाह बानो केस के बाद भी स्वीकार नहीं किया गया।

नागरिकों के बीच भेद को कायम रखा गया? क्यों समुदायों के बीच असामनता की खाई खोदी गई? लेकिन अब इस खाई को भरा जाएगा। यह काम आज से, अभी से, यहीं से शुरू होगा।

समान नागरिक संहिता, विवाह, भरण-पोषण, गोद लेने, उत्तराधिकार, विवाह विच्छेद जैसे मामलों में भेदभाव न करते हुए सभी को बराबरी का अधिकार देगा। यही प्रत्येक नागरिक का मौलिक अधिकार भी है। प्रधानमंत्री मोदी  जी के शब्दों में कहा जाए तो यही समय है, सही समय है। अब समय आ गया है कि महिलाओं के साथ होने वाले अत्यचारों को रोका जाए।

आजादी से पहले हमारे देश में जो शासन व्यवस्था थी, उसकी सिर्फ एक ही नीति थी और वो नीति थी फूट डालो और राज करो। अपनी उसी नीति को अपनाकर उन्होंने कभी भी सबके लिए समान कानून का निर्माण नहीं होने दिया। 

संविधान सभा ने इससे संबंधित विषयों को संविधान की समवर्ती सूची का अंग बनाया है। जिससे केन्द्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी अपने राज्य के लिए समान नागरिक संहिता पर कानून बना सकें।

आखिर क्यों आजादी के बाद 60 सालों से अधिक समय तक राज करने वाले लोगों ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के बारें में विचार तक नहीं किया। वे राष्ट्रनीति को भूलकर सिर्फ और सिर्फ तुष्टिकरण की राजनीति करते रहे।

हमारी माताओं-बहनों के इंतजार की घड़िया अब समाप्त होने जा रही हैं। उत्तराखण्ड इसका साक्षी बनने जा रहा है जिसके निर्माण के लिए इस प्रदेश की मातृशक्ति ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया।

हमारी सरकार का यह कदम संविधान में लिखित नीति और सिद्धांत के अनुरूप है। यह महिला सुरक्षा तथा महिला सशक्तिकरण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण अध्याय है।

समान नागरिक संहिता का विधेयक आदरणीय प्रधानमंत्री जी द्वारा देश को विकसित, संगठित, समरस और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने के लिए किए जा रहे महान यज्ञ में हमारे प्रदेश द्वारा अर्पित की गई एक आहुति मात्र है।

UCC के इस विधेयक में समान नागरिक संहिता के अंतर्गत जाति, धर्म, क्षेत्र व लिंग के आधार पर भेद करने वाले व्यक्तिगत नागरिक मामलों से संबंधित सभी कानूनों में एकरूपता लाने का प्रयास किया गया है।

हमने संविधान के अनुच्छेद 342 के अंतर्गत वर्णित हमारी अनुसूचित जनजातियों को इस संहिता से बाहर रखा है, जिससे उन जनजातियों और उनके रीति रिवाजों का संरक्षण किया जा सके।

इस संहिता में विवाह की आयु जहां एक ओर सभी युवकों के लिए 21 वर्ष रखी गयी है, वहीं सभी युवतियों के लिए इसे 18 वर्ष निर्धारित किया गया है। ऐसा करके हम बच्चियों का शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न रोक पाएंगे।

अब इस कानून के ज़रिए दंपत्ति में से यदि कोई भी, बिना दूसरे की सहमति से अपना धर्म परिवर्तन करता है तो दूसरे व्यक्ति को उस व्यक्ति से विवाह विच्छेद करने और गुजारा भत्ता लेने का पूरा अधिकार होगा।

जिस प्रकार से अभी तक जन्म व मृत्यु का पंजीकरण होता था, उसी प्रकार की प्रक्रिया को अपनाकर विवाह और विवाह विच्छेद दोनों का पंजीकरण भी किया जा सकेगा। हमारी सरकार के सरलीकरण के मंत्र के अनुरूप यह पंजीकरण एक वेब पोर्टल के माध्यम से भी किया जा सकेगा।

अब समस्त सरकारी सुविधाओं का लाभ केवल वही दंपत्ति ले पाएंगे जिन्होंने विवाह का पंजीकरण करा लिया हो। पंजीकरण न होने की स्थिति में भी किसी विवाह को अवैध या अमान्य नहीं माना जाएगाी। 

यदि कोई व्यक्ति अपना पहला विवाह छुपाकर किसी महिला को धोखा देकर दूसरा विवाह करने का प्रयास करेगा तो उसका पता अब आसानी से लग सकेगा, ऐसा करने से हमारी माताओं-बहनों में एक सुरक्षा का भाव जागृत होगा।

पति पत्नी के विवाह विच्छेद या घरेलू झगड़े के समय 5 वर्ष तक के बच्चे की अभिरक्षा (कस्टडी) उसकी माता के पास ही रहेगी।

संपत्ति में अधिकार के लिए जायज और अब तक नाजायज कहे जाने वाले बच्चों में कोई भेद नहीं किया गया है। अब सभी संतानों को समान मानते हुए संपत्ति के अधिकार में समानता दी गयी है।

UCC में लिव इन संबंधों को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है। लिव इन रिलेशनशिप में तब रह सकेंगे, जब वो पहले से विवाहित या किसी अन्य के साथ लिव इन रिलेशनशिप में न हों और कानूनन प्रतिबंधित संबंधों की श्रेणी में न आते हों।

हम सौभाग्यशाली हैं कि हम ऐसे महान नेता आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी के पदचिन्हों पर चलने वाले लोग हैं। हम सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास की मोदी जी की कार्य संस्कृति पर चलने वाले लोग हैं।

विधानसभा चुनाव में किया था वादा-

आपको बता दें कि बीजेपी ने 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा किया था। सरकार बनने के बाद धामी सरकार ने एक कमेटी बनाई थी। कमेटी ने ढाई लाख से ज्यादा सुझाव मांगे और उस आधार पर यूसीसी का ड्राफ्ट तैयार किया और अपनी रिपोर्ट 2 फरवरी 2014 को मुख्यमंत्री धामी को सौंपी थी, जिसके बाद 6 फरवरी 2024 को ये विधायक विधानसभा के पटल पर रखा गया और फिर 6 और 7 फरवरी को इस पर विधानसभा में चर्चा के बाद ये विधेयक विधानसभा में पास हो गया।

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