उत्तराखंड | हरीश रावत ने की धामी सरकार के फैसले की तारीफ, लगे हाथ एक सलाह भी दे डाली

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उत्तराखंड | हरीश रावत ने की धामी सरकार के फैसले की तारीफ, लगे हाथ एक सलाह भी दे डाली

Harish Dhami

हरदा ने आगे कहा कि उसके संग्रह का भी प्रति किलो मूल्य निर्धारित किया जाना चाहिए। हर वर्ष चीड़ की शाखाओं की अनिवार्य लोपिंग वन विभाग को करनी चाहिए ताकि चीड़ की पत्तियां कम से कम जमीन पर गिरे।


 

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड के जंगलों में आग ने जहां शासन –प्रशासन की नींद उड़ा दी थी तो इसको काबू करने में भी सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी। मुख्यमंत्री धामी ने खुद ग्राउंड जीरो पर उतरकर जंगल में बिखरी हुई पिरूल की पत्तियों को एकत्र करते हुए जन-जन को इसके साथ जुड़ने का संदेश दिया। साथ ही धामी सरकार ने वनाग्नि को रोकने के लिए 'पिरूल लाओ-पैसे पाओ' मिशन पर भी कार्य शुरु किया।

इस मिशन के तहत जंगल की आग को कम करने के उद्देश्य से पिरूल कलेक्शन सेंटर पर ₹50/किलो की दर से पिरूल खरीदे जाएंगे। धामी ने बताया कि इस मिशन का संचालन पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड द्वारा किया जाएगा इसके लिए ₹50 करोड़ का कार्पस फंड पृथक रूप से रखा जाएगा।

अब पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने सरकार के इस फैसले की सराहना की है साथ ही सरकार को एक सलाह भी दे डाली। हरदा ने कहा- पिरूल संग्रह का मूल्य बढ़ाकर ₹50 प्रति किलो करना एक मुख्यमंत्री का अच्छा कदम है टिके अर्थात चीड़ के वृक्ष पर लगने वाला फल आग फैलाने में भी और चीड़ की उत्पत्ति को प्रचारित प्रसारित करने के लिए भी अहम भूमिका अदा करता है, उसका संग्रह भी वनअग्नि को रोकने में और चीड़ के प्रसार को रोकने में कारगर कदम होगा।

हरदा ने आगे कहा कि उसके संग्रह का भी प्रति किलो मूल्य निर्धारित किया जाना चाहिए। हर वर्ष चीड़ की शाखाओं की अनिवार्य लोपिंग वन विभाग को करनी चाहिए ताकि चीड़ की पत्तियां कम से कम जमीन पर गिरे।

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने साथ ही कहा कि एक कदम और उठाना आवश्यक है क्योंकि चीड़ गांव के खेत और बाड़ी तक भी पहुंच गया है। उत्तराखंड विधानसभा को न भूमि में चीड़ उन्मूलन का यह कानून पारित करना चाहिए ताकि भू स्वामी अपने खेत में पैदा हो रहे उसके पौधे का उन्मूलन कर सके, तो सरकार को चाहिए न खेत में खड़े वृक्षों के पातन की अनुमति प्रक्रिया को इतना सरलीकृत कर दिया जाए की लोग सरलता से चीड़ के वृक्षों का निष्पादन कर सकें, यदि हम ये कदम नही उठाएंगे तो अगले पंद्रह सालों के अंदर उत्तराखंड का पर्वतीय अंचल के गांव भी चीड़ के जंगल में परिवर्तित हो जायेगा।

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