उत्तराखंड | नहीं रहे 'हिमालय के रक्षक' सुंदर लाल बहुगुणा, जानिए उनके बारे में सब कुछ

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उत्तराखंड | नहीं रहे 'हिमालय के रक्षक' सुंदर लाल बहुगुणा, जानिए उनके बारे में सब कुछ

Bahuguna

हिमालय के रक्षक सुंदरलाल बहुगुणा ने पर्यावरण सुरक्षा को अपना जीवन समर्पित कर दिया। गांधी के पक्के अनुयायी बहुगुणा ने अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य तय कर लिया और वह पर्यावरण की सुरक्षा था। उनका जन्म 9 जनवरी, 1927 को हुआ था।


ऋषिकेश (उत्तराखंड पोस्ट) एम्स ऋषिकेश में भर्ती पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा का 94 साल की उम्र में निधन हो गया है। बहुगुण कोरोना से संक्रमित थे और ऋषिकेश एम्स में उनका इलाज चल रहा था लेकिन शुक्रवार दोपहर 12 बजे उनका निधन हो गया। 

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में भर्ती 94 वर्षीय पर्यावरणविद सुंदलाल बहुगुणा को कोविड निमोनिया हुआ था। सिपेप मशीन सपोर्ट पर उनका ऑक्सीजन सेचूरेशन लेवल 86 फीसदी पर आ गया था।

 

हिमालय के रक्षक- सुंदर लाल बहुगुणा

हिमालय के रक्षक सुंदरलाल बहुगुणा ने पर्यावरण सुरक्षा को अपना जीवन समर्पित कर दिया। गांधी के पक्के अनुयायी बहुगुणा ने अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य तय कर लिया और वह पर्यावरण की सुरक्षा था। उनका जन्म 9 जनवरी, 1927 को हुआ था।

13 साल की उम्र में राजनीति में आए

उत्तराखंड के टिहरी में जन्मे सुंदरलाल उस समय राजनीति में दाखिल हुए, जब बच्चों के खेलने की उम्र होती है। 13 साल की उम्र में उन्होंने राजनीतिक करियर शुरू किया। दरअसल राजनीति में आने के लिए उनके दोस्त श्रीदेव सुमन ने उनको प्रेरित किया था। सुमन गांधीजी के अहिंसा के सिद्धांतों के पक्के अनुयायी थे। सुंदरलाल ने उनसे सीखा कि कैसे अहिंसा के मार्ग से समस्याओं का समाधान करना है। 1956 में उनकी शादी होने के बाद राजनीतिक जीवन से उन्होंने संन्यास ले लिया।

23 साल की उम्र में हुआ विवाह

18 साल की उम्र में वह पढ़ने के लिए लाहौर गए। उन्होंने मंदिरों में हरिजनों के जाने के अधिकार के लिए भी आंदोलन किया। 23 साल की उम्र में उनका विवाह विमला देवी के साथ हुआ। उसके बाद उन्होंने गांव में रहने का फैसला किया और पहाड़ियों में एक आश्रम खोला। बाद में उन्होंने टिहरी के आसपास के इलाके में शराब के खिलाफ मोर्चा खोला। 1960 के दशक में उन्होंने अपना ध्यान वन और पेड़ की सुरक्षा पर केंद्रित किया।

चिपको आंदोलन

पर्यावरण सुरक्षा के लिए 1970 में शुरू हुआ आंदोलन पूरे भारत में फैलने लगा। चिपको आंदोलन उसी का एक हिस्सा था। गढ़वाल हिमालय में पेड़ों के काटने को लेकर शांतिपूर्ण आंदोलन बढ़ रहे थे। 26 मार्च, 1974 को चमोली जिला की ग्रामीण महिलाएं उस समय पेड़ से चिपककर खड़ी हो गईं जब ठेकेदार के आदमी पेड़ काटने के लिए आए। यह विरोध प्रदर्शन तुरंत पूरे देश में फैल गए। 1980 की शुरुआत में बहुगुणा ने हिमालय की 5,000 किलोमीटर की यात्रा की। उन्होंने यात्रा के दौरान गांवों का दौरा किया और लोगों के बीच पर्यावरण सुरक्षा का संदेश फैलाया। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भेंट की और इंदिरा गांधी से 15 सालों तक के लिए पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का आग्रह किया। इसके बाद पेड़ों के काटने पर 15 साल के लिए रोक लगा दी गई।

टिहरी बांध के खिलाफ आंदोलन

बहुगुणा ने टिहरी बांधी के खिलाफ आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने कई बार भूख हड़ताल की। तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव के शासनकाल के दौरान उन्होंने डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी। सालों तक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के बाद 2004 में बांध पर फिर से काम शुरू किया गया। उनका कहना है कि इससे सिर्फ धनी किसानों को फायदा होगा और टिहरी के जंगल में बर्बाद हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि भले ही बांध भूकंप का सामना कर लेगा लेकिन यह पहाड़ियां नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि पहले से ही पहाड़ियों में दरारें पड़ गई हैं। अगर बांध टूटा तो 12 घंटे के अंदर बुलंदशहर तक का इलाका उसमें डूब जाएगा।

सुंदर लाल बहुगुणा ने निम्नलिखित किताबें लिखी हैं

  • धरती की पुकार
  • Ecology Is Permanent Economy
  • भू प्रयोग में बुनियादी परिवर्तन की ओर

सुंदर लाल बहुगुणा को मिले पुरस्कार

  • जमनालाल बजाज पुरस्कार (1986)
  • Right Livelihood Award (1987)
  • पद्म विभूषण (2009)
  • उन्होंने नोबेल शांति पुरस्कार और पद्म श्री अवॉर्ड लेने से मना कर दिया।

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