कैसे बना और क्यों गिराया जा रहा है नोएडा का Twin Tower, एक मिनट में पूरी कहानी जानिए

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कैसे बना और क्यों गिराया जा रहा है नोएडा का Twin Tower, एक मिनट में पूरी कहानी जानिए

Twin Towers

जानकारी के अनुसार टावर्स की ऊंचाई बढ़ने पर दो टावर के बीच का अंतर बढ़ाया जाता है। खुद फायर ऑफिसर ने कहा कि एमराल्ड कोर्ट से एपेक्स या सियाने की न्यूनतम दूरी 16 मीटर होनी चाहिए लेकिन एमराल्ड कोर्ट के टावर से इसकी दूरी महज 9 मीटर थी। इस नियम के उल्लंघन पर नोएडा अथॉरिटी ने फायर ऑफिसर को कोई जवाब नहीं दिया।


 

नोएडा (उत्तराखंड पोस्ट) नोएडा के सेक्टर-93ए में स्थित सुपरटेक बिल्डर के ट्विन को रविवार दोपहर ढाई बजे ध्वस्त कर दिया जाएगा। भ्रष्टाचार की बुनियाद पर खड़ी इस गगनचुंबी इमारत का निर्माण सभी नियमों को ताक पर रखकर किया गया। वहीं इसके खिलाफ एमराल्ड कोर्ट के बायर्स ने अपने खर्च पर एक लंबी लड़ाई लड़ी। अगर कोर्ट का आदेश समय से नहीं आता तो बिल्डर इन टावरों को 40 मंजिल तक बना डालता।

क्या है पूरा मामला-

दरअसल, 23 नवंबर 2004 को सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट के लिए नोएडा प्राधिकरण ने जमीन आवंटन किया था। जिसमें सुपरटेक बिल्डर को कुल 84,273 वर्गमीटर जमीन आवंटित की गई। 16 मार्च 2005 को इसकी लीज डीड हुई।  हालांकि उस दौरान जमीन की पैमाइश में लापरवाही के कारण कई बार जमीन बढ़ी या घटी हुई भी निकल आती थी। इसी क्रम में यहां पर प्लॉट नंबर 4 में आवंटित जमीन के पास ही 6.556.61 वर्गमीटर जमीन का एक टुकड़ा निकल आया, जिसे बिल्डर ने ही अपने नाम आंवटित करा लिया। इसके लिए 21 जून 2006 को लीज डीड की गई लेकिन इन दो अलग-अलग प्लॉट्स को नक्शा पास होने के बाद एक प्लॉट बना दिया गया, जिस पर सुपरटेक ने एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट लॉन्च कर दिया।

इस प्रोजेक्ट में बिल्डर ने ग्राउंड फ्लोर के अलावा 11 मंजिल के 16 टावर्स बनाने की योजना तैयार की थी। वहीं नक्शे के हिसाब से आज जिस स्थान पर 32 मंजिला ट्विन टावर खड़े हैं, वहां पर ग्रीन पार्क दिखाया गया था। 2008-09 में इस प्रोजेक्ट को नोएडा प्राधिकरण से कंप्लीशन सर्टिफिकेट भी मिल गया लेकिन इसी बीच 28 फरवरी 2009 को उत्तर प्रदेश शासन ने नए आवंटियों के लिए एफएआर बढ़ाने का निर्णय लिया। वहीं पुराने आवंटियों को कुल एफएआर का 33 प्रतिशत तक खरीदने का विकल्प भी दिया। इसी के साथ बिल्डरों को भी अधिक फ्लैट्स बनाने की छूट मिल गई, जिसके बाद सुपरटेक ग्रुप को भी इस बिल्डिंग की ऊंचाई 24 मंजिल और 73 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति मिल गई लेकिन इसके बाद तीसरी बार जब फिर से रिवाइज्ड प्लान में बिल्डिंग की ऊंचाई 40 और 39 मंजिला करने के साथ ही 121 मीटर तक बढ़ाने की अनुमति सुपरटेक को मिली तो होम बायर्स का सब्र टूट गया।

RWA ने बिल्डर से बात करके नक्शा दिखाने की मांग की लेकिन बायर्स के मांगने के बावजूद बिल्डर ने लोगों को नक्शा नहीं दिखाया। तब RWA ने नोएडा अथॉरिटी से नक्शा देने की मांग की। यहां भी घर खरीदारों को कोई मदद नहीं मिली।

एपेक्स और सियाने को गिराने की इस लंबी लड़ाई में शामिल रहे प्रोजेक्ट के लोगों का कहना है कि नोएडा अथॉरिटी ने बिल्डर के साथ मिलीभगत करके ही इन टावर्स के निर्माण को मंजूरी दी है। उनका आरोप है कि नोएडा अथॉरिटी ने नक्शा मांगने पर कहा कि वो बिल्डर से पूछकर नक्शा दिखाएगी जबकि बिल्डिंग बायलॉज के मुताबिक किसी भी निर्माण की जगह पर नक्शा लगा होना अनिवार्य है। इसके बावजूद बायर्स को प्रोजेक्ट का नक्शा नहीं दिखाया गया। बायर्स का विरोध बढ़ने के बाद सुपरटेक ने इसे अलग प्रोजेक्ट बताया।

2012 में बायर्स ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का रुख किया। कोर्ट के आदेश पर पुलिस जांच के आदेश दिए गए और पुलिस जांच में बायर्स की बात को सही बताया गया। निवासियों का कहना है कि इस जांच रिपोर्ट को भी दबा दिया गया। इस बीच बायर्स अथॉरिटी के चक्कर लगाते रहे लेकिन वहां से नक्शा नहीं मिला। इस बीच खानापूर्ति के लिए अथॉरिटी ने बिल्डर को नोटिस तो जारी किया लेकिन कभी भी बिल्डर या अथॉरिटी की तरफ से बायर्स को नक्शा नहीं मिला।

जानकारी के अनुसार टावर्स की ऊंचाई बढ़ने पर दो टावर के बीच का अंतर बढ़ाया जाता है। खुद फायर ऑफिसर ने कहा कि एमराल्ड कोर्ट से एपेक्स या सियाने की न्यूनतम दूरी 16 मीटर होनी चाहिए लेकिन एमराल्ड कोर्ट के टावर से इसकी दूरी महज 9 मीटर थी। इस नियम के उल्लंघन पर नोएडा अथॉरिटी ने फायर ऑफिसर को कोई जवाब नहीं दिया। 16 मीटर की दूरी का नियम इसलिए ज़रूरी है क्योंकि ऊंचे टावर के बराबर में होने से हवा, धूप रुक जाती है। इसके साथ ही आग लगने की दशा में दो टावर्स में कम दूरी होने से आग फैलने का खतरा बढ़ जाएगा।

निवासियों का आरोप है कि नए नक्शे में इन बातों का ख्याल नहीं रखा गया। बिल्डर ने IIT रुड़की के एक असिस्टेंट प्रोफेसर से निजी मंजूरी लेकर निर्माण कार्य शुरू करा दिया जबकि इस तरह के प्रोजेक्ट में IIT की आधिकारिक मंजूरी आवश्यक है जिसका यहां पर पालन नहीं किया गया।

2012 में ये मामला जब इलाहाबाद हाई कोर्ट में पहुंचा तो एपेक्स और सियाने की महज 13 मंजिलें बनी थीं लेकिन डेढ़ साल के अंदर ही सुपरटेक ने 32 स्टोरीज़ का निर्माण पूरा कर दिया। आरोप है कि इसके लिए बिल्डर ने दिन रात कंस्ट्रक्शन कराया था। हालांकि 2014 में हाईकोर्ट ने बिल्डर को बड़ा झटका दिया और इन्हें गिराने का आदेश जारी कर दिया,  जिसके बाद 32 मंजिल पर ही इस इमारत का काम रुक गया। काम ना रुकने के मामले में ये टावर्स 40 और 39 मंजिल तक बनाए जाने थे। वहीं जानकारों की मानें तो दूसरे रिवाइज्ड प्लान के मुताबिक अगर ये टावर 24 मंजिल तक रुक जाते तो भी ये मामला सुलझ जाता क्योंकि ऊंचाई के हिसाब से दो टावर्स के बीच की दूरी का नियम टूटने से बच जाता।

गिराने में खर्च होंगे 17 करोड़ से अधिक

जानकारी के मुताबिक ट्विन टावर्स को गिराने में करीब 17.55 करोड रुपए का खर्च आने का अनुमान है। जिसे बिल्डर से वसूला जाएगा। इन 2 टावर्स को बनाने में सुपरटेक बिल्डर ने करीब 200 से 300 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। वहीं इन्हें गिराने का आदेश जारी होने से पहले तक इन टावरों में बने फ्लैट्स की मार्केट वैल्यू बढ़कर 700 से 800 करोड़ तक पहुंच चुकी थी। ये वैल्यू तब है जबकि विवाद बढ़ने से इनकी वैल्यू घट चुकी थी। रियल एस्टेट के जानकारों का मानना है कि इस इलाके में 10 हज़ार रुपए प्रति वर्ग फीट का रेट है। इस हिसाब से बिना किसी विवाद के इन टावर्स की बाज़ार कीमत 1000 करोड़ के पार निकल गई होती।

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