मां कात्यायनी की आराधना से नष्ट होते हैं भक्तों के रोग, शोक, संताप और भय

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मां कात्यायनी की आराधना से नष्ट होते हैं भक्तों के रोग, शोक, संताप और भय

नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। अब ख़बरें एक क्लिक पर इस लिंक पर क्लिक कर Download करें Mobile App – उत्तराखंड पोस्ट महर्षि की इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। तब मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म


नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्य गोत्र में महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। अब ख़बरें एक क्लिक पर इस लिंक पर क्लिक कर Download करें Mobile App – उत्तराखंड पोस्ट

महर्षि की इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। तब मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं।

देवी कात्यायनी को नवरात्रि में छठे दिन पूजा जाता है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों के रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं।

मां कात्यायनी का गुण शोध कार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व और भी बढ़ जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे हो जाते हैं। कहते हैं भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने कात्यायनी की ही पूजा की थी। ये पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी। इसीलिए ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है।
मा कात्यायनी की चार भुजाएं हैं। दाईं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है और नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है और नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है।
मां दुर्गा के इस स्वरूप की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है। इसलिए कहा जाता है कि इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है।

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