Shaurya Gatha
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लेफ्टिनेंट तिवारी करीब छह महीने पहले 14 दिसंबर 2024 को सेना में कमिशन हुए। 22 मई यानी गुरुवार को वे एक टेक्टिकल ऑपरेटिंग बेस (TOB) की तरफ जा रही रूट ओपनिंग पेट्रोल का नेतृत्व कर रहे थे। ये बेस भविष्य
देश पर कुर्बान होने वालों में उत्तराखंडी के वीरों का कोई सानी नहीं है। देश के प्रति वफादारी और बलिदान उत्तराखण्ड की माटी में कुछ इस कदर घुला है कि चाहे जंग का कोई भी मोर्चा क्यों न हो, वीरभूमि के रणब
कीर्ति चक्र से सम्मानित होने वाले जवानों में शहीद कैप्टन अंशुमन सिंह भी शामिल थे, जिन्हें मरणोपरांत इस सम्मान से नवाजा गया। राष्ट्रपति मुर्मू से इस सम्मान को लेने के लिए उनकी विधवा पत्नी स्मृति सिंह
देश के वीर जवानों ने युद्ध के दौरान अपने अदम्य साहस और शौर्य का परिचय दिया था। शौर्य गाथा में हम बात करेंगे कारगिल के शेर कैप्टन विक्रम बत्रा की जिन्हें उनके पराक्रम और शौर्य के लिए मरणोपरांत देश के
पालमपुर निवासी जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर 9 सितंबर, 1974 को दो बेटियों के बाद दो जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ। माता कमलकांता की श्रीरामचरितमानस में गहरी श्रद्धा थी तो उन्होंने दोनों का नाम लव
कुछ साल पहले इंडियन आर्मी में ऑफिसर बनने के लिए तैयारी कर रहे छात्रों को उन्होंने अपना व्यक्तिगत अनुभव बताया था। सीडीएस रावत ने उस घटना का जिक्र किया था, जब वो युवा थे और भारतीय सेना में अफसर बनने के
शौर्य गाथा में हम बात करेंगे कारगिल के शेर कैप्टन विक्रम बत्रा की जिन्हें उनके पराक्रम और शौर्य के लिए मरणोपरांत देश के सर्वोच्च सैन्य सम्मान परमवीर चक्र से नवाजा गया।
जिस चौकी पर जसवंत सिंह ने आखिरी लड़ाई लड़ी थी उसका नाम अब जसवंतगढ़ रख दिया गया है और वहां उनकी याद में एक मंदिर बनाया गया है। मंदिर में उनसे जुड़ीं चीजों को आज भी सुरक्षित रखा गया है। पांच सैनिकों को
आज पूरा देश 22वां विजय दिवस मना रहा है और अपने वीर सपूतों को नम आंखों से याद कर रहा है। 26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के दांत खट्टे करके अपनी विजय पताका लहराई थी।
आज पूरा देश 22वां विजय दिवस मना रहा है और अपने वीर सपूतों को नम आंखों से याद कर रहा है। 26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान के दांत खट्टे करके अपनी विजय पताका लहराई थी।