प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा का उत्तराखंड से था गहरा नाता, जयंती पर पढ़िए शौर्य गाथा

"दुश्मन हमसे सिर्फ़ 50 गज़ की दूरी पर है। दुश्मन हमारी तुलना में काफ़ी अधिक है। हम आग की लपटों में बुरी तरह फंसे हुए हैं लेकिन हम यहां से एक इंच भी पीछे नहीं हटने वाले और गोलियों के अंतिम राउंड तक लड़ेंगे।"
मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) को मरणोपरान्त ‘परमवीर चक्र’ (Param Veer Chakra) से सम्मानित किया गया। मेजर सोमनाथ शर्मा को सन् 1947 के नवंबर माह में उनकी बहादुरी के लिए सर्वोच्च मेडल से नवाज़ा गया था। उनके दाहिने हाथ में प्लास्टर चढ़े होने के बावजूद उन्होंने तय किया कि वे उनके साथियों के साथ ही जियेंगे-मरेंगे। वे जब दुश्मन से लड़ने में व्यस्त थे तभी उनके नज़दीक रखे गोले-बारूद पर मोर्टार बम गिर कर फट गया।
उन्होंने उनकी मौत से चंद मिनट पहले एक संदेश ब्रिगेड हेडक्वार्टर भेजा था। इसमें वे कहते हैं- दुश्मन हमसे सिर्फ़ 50 गज़ की दूरी पर है। दुश्मन हमारी तुलना में काफ़ी अधिक है। हम आग की लपटों में बुरी तरह फंसे हुए हैं लेकिन हम यहां से एक इंच भी पीछे नहीं हटने वाले और गोलियों के अंतिम राउंड तक लड़ेंगे।
वर्ष 1923 में देश के पहले परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) का जन्म हिमाचल प्रदेश के छोटे से गांव डाढ़ के एक सैन्य परिवार में हुआ था। उनकी स्कूली शिक्षा नैनीताल में और देहरादून के प्रिंस ऑफ वेल्स रॉयल मिलिट्री कॉलेज में उच्च शिक्षा हुई।
22 फरवरी वर्ष 1942 को उन्हें कुमाऊं रेजिमेंट में कमीशन मिला। उन्होंने 1947 में पाकिस्तान से हुई जंग में हाथ में फ्रैक्चर के बाद भी हिस्सा लिया। 3 नवंबर 1947 को दुश्मन से लोहा लेते हुए मेजर सोमनाथ बडगाम में शहीद हो गए। उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र (Param Veer Chakra) से सम्मानित किया गया।
3 नवंबर 1947 मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) की टुकड़ी को कश्मीर घाटी के बडगाम मोर्चे पर जाने का आदेश दिया गया। जब दुश्मन के 500 सैनिकों ने तीन तरफ से भारतीय सेना को घेरकर हमला शुरू कर दिया, तब मेजर शर्मा ने दुश्मन बहादुरी से मुकाबला किया। मेजर की सेना के कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके थे और काफी कम संख्या में सैनिक बचे थे। मेजर सोमनाथ का बायां हाथ भी चोटिल था, लेकिन उन्होंने हार नहीं माने। वे मैग्जीन में गोलियां भरकर सैनिकों को देते गए, लेकिन दुर्भाग्य से वे दुश्मन के एक मोर्टार का निशाना बन गए और वीरगति को प्राप्त हुए। अंतिम समय में भी वे अपने सैनिकों का सामना करने के लिए हौसला बढ़ाते रहे।
दोनों ओर से लगातार गोलाबारी हो रही थी। कम सैनिकों और गोला बारूद के बाद भी मेजर की टुकड़ी हमलावरों पर भारी पड़ रही थी। 3 नवम्बर, 1947 को शत्रुओं का सामना करते हुए एक हथगोला मेजर सोमनाथ (Major Somnath Sharma) के समीप आ गिरा। उनका सारा शरीर छलनी हो गया। खून के फव्वारे छूटने लगे। इस पर भी मेजर ने अपने सैनिकों को सन्देश दिया – इस समय मेरी चिन्ता मत करो। हवाई अड्डे की रक्षा करो। दुश्मनों के कदम आगे नहीं बढ़ने चाहिए….। यह सन्देश देते हुए मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) ने प्राण त्याग दिये।
उनके बलिदान से सैनिकों का खून खौल गया। उन्होंने तेजी से हमला बोलकर शत्रुओं को मार भगाया। यदि वह हवाई अड्डा हाथ से चला जाता, तो पूरा कश्मीर (Kashmir) आज पाकिस्तान (Pakistan के कब्जे में होता। मेजर सोमनाथ शर्मा को मरणोपरान्त ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। शौर्य और वीरता के इस अलंकरण के वे स्वतन्त्र भारत में प्रथम विजेता हैं। परमवीर चक्र विजेता शहीद मेजर सोमनाथ शर्मा (Major Somnath Sharma) को सलाम...जय हिंद
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