कोरोना नहीं फिर भी क्यों लगा उत्तराखंड के चार गावों में लॉकडाउन? वजह जानकर रह जाएंगे हैरान
उर्गम घाटी के डुंग्री, बरोसी और जोशीमठ क्षेत्र के सलूड़ और डुंग्रा गांव के लोग इन दिनों भूमियाल देवता के मंदिर में पूजा अर्चना में मग्न हैं। 10 जनवरी को अपराह्न दो बजे से गांव के भूमियाल देवता के मंदिर में उबेद (मंत्रों से गांव की घेरबाड़) कार्यक्रम शुरू हुआ। पूजा शुरू होने से पहले चारों गांवों की सीमाओं का मंत्रों से बंधन कर दिया गया।
चमोली (उत्तराखंड पोस्ट) कोरोना काल में लॉकडाउन का नाम आपने खूब सुना भी और इसको देखा भी। संक्रामक बीमारी होने के चलते घर से बाहर निकलने पर मनाही थी लेकिन अब उत्तराखंड के सीमांत जिले चमोली के चार गावों में लॉकडाउन से हालात है, यहां के चार गांवों की सीमाओं के अंदर-बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी गई है। आखिर इन गांवों की सीमाओं से बाहर आने-जाने पर क्यों पाबंदी लगाई गई है, आईए जानते हैं-
दरअसल, देवभूमि उत्तराखंड में देवताओं की पूजा करने के लिए हर गांव और क्षेत्र के अपने-अपने अनुष्ठान और रिवाज हैं। ऐसा ही एक रिवाज सीमांत जिले चमोली की उर्गम घाटी के चार गांवों में खुशहाली, अच्छी फसल और सेहत के लिए अनुष्ठान चल रहा है। प्रत्येक 60 साल में होने वाली यह पूजा चार दिन तक चलेगी।
उर्गम घाटी के डुंग्री, बरोसी और जोशीमठ क्षेत्र के सलूड़ और डुंग्रा गांव के लोग इन दिनों भूमियाल देवता के मंदिर में पूजा अर्चना में मग्न हैं। 10 जनवरी को अपराह्न दो बजे से गांव के भूमियाल देवता के मंदिर में उबेद (मंत्रों से गांव की घेरबाड़) कार्यक्रम शुरू हुआ। पूजा शुरू होने से पहले चारों गांवों की सीमाओं का मंत्रों से बंधन कर दिया गया।
पूजा-अर्चना निर्विघ्न चले, इसलिए गांवों की सीमाओं पर पूजित चावल व अन्य अनाज से मंत्रों के जरिए लक्ष्मण रेखा खींच दी गई है। जितने दिन तक पूजा-अर्चना होगी, उतने दिन तक इन गांवों का कोई भी व्यक्ति न तो गांव की सीमा से बाहर जा सकेगा और न ही बाहर से कोई इन गांवों में प्रवेश कर सकेगा। वाहनों की आवाजाही पर भी आयोजकों ने पूरी तरह से पाबंदी लगा दी।
एक तरह का ये लॉकडाउन 10 जनवरी से लगा था और 13 जनवरी तक रहेगा। इस दिन पूजा-अर्चना संपन्न होने के साथ ही सीमाओं के बंधन खोल दिए जाएंगे। तब गांवों में वाहनों की आवाजाही हो सकेगी। इसके साथ ही स्थानीय ग्रामीण भी इधर-उधर जा सकेंगे, लेकिन जितने दिन देवता की पूजा के लिए लॉकडाउन रहेगा, उतने दिन सभी ग्रामीण देवता के मंदिर में पूजा-अर्चना में तल्लीन रहेंगे।
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