उत्तराखंड | हरीश रावत को आज भी है इस बात की टीस, जन्मदिन पर बयां किया अपना दर्द

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उत्तराखंड | हरीश रावत को आज भी है इस बात की टीस, जन्मदिन पर बयां किया अपना दर्द

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड में अपनी सरकार गंवाने का दर्द तत्कालीन सीएम हरीश रावत आज तक नहीं भूल पाए हैं। अपने जन्मदिवस के मौके पर हरीश रावत ने एक बार फिर से अपने इस दर्द को बयां किया है। हरीश रावत ने इस पर एक लंबी-चौड़ी पोस्ट अपने फेसबुक पेज पर लिखी है, जिसमें इस


देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड में अपनी सरकार गंवाने का दर्द तत्कालीन सीएम हरीश रावत आज तक नहीं भूल पाए हैं। अपने जन्मदिवस के मौके पर हरीश रावत ने एक बार फिर से अपने इस दर्द को बयां किया है।

हरीश रावत ने इस पर एक लंबी-चौड़ी पोस्ट अपने फेसबुक पेज पर लिखी है, जिसमें इस दौरान अपनी सरकार गंवाने के साथ ही हुए राजनीतिक नफा-नुकसान पर बात की है।

हरीश रावत लिखते हैं कि राष्ट्रपति शासन का कटु दंश आज भी बहुत चुभता है। राष्ट्रपति शासन एक अप्रत्याशित घटनाक्रम था। अति उग्र कदम था। अच्छी भली चलती सरकार पर एक असंवैधानिक वोट, सामान्य कल्पना से परे उठाया गया कदम। मैंने, कांग्रेस ने व उत्तराखण्ड ने राष्ट्रपति शासन के कारण बहुत कुछ खोया। भाजपा ने पाया ही पाया। दल बदलुओं ने भी खूब पाया, विधायक बने, मंत्री बने। यदि प्रदेश में राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जाता, कांग्रेस सरकार बनाती, चाहे मामूली बहुमत से बनाती। राष्ट्रपति शासन ने सरकार की लय व पार्टी के तारतम्य को गड़बड़ा दिया।

2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा की भारी विजय के बावजूद, कांग्रेस राज्य में तीन विधानसभा उपचुनाव व पंचायतों के चुनाव जीतने में सफल रही। कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह था, लोग भी हमारी बात बहुत गौर से सुन रहे थे, प्रशंसा भी करते थे। मेरी सभाओं में भारी भीड़ जुटती थी। हमारी सरकार का आखरी बजट प्रस्तुत किया जा चुका था। एक बहुआयामी उत्तराखण्डी सोच का बड़ा बजट था। हमने नये जिलों के निर्माण के लिये सौ करोड़ रूपये सहित, सार्वभौंम नागरिक पेंशन के लिये भी पचास करोड़ के टोकन बजट की व्यवस्था, बजटीय प्राविधानों में की थी। यह नागरिक पेंशन, समाज कल्याण मद से संचालित पेंशनों से हटकर थी।

चुनावी वर्ष के लिए हमारे पास पर्याप्त बजटीय प्राविधान थे। हम समाज के प्रत्येक वर्ग को संतुष्ट कर पाने की उम्मीद कर रहे थे। गैरसैंण में विधानसभा भवन के निर्माण के साथ, सचिवालय व आवासीय भवनों के निर्माण के लिए हमने पर्याप्त धन रखा था। भराड़ीसैंण टाउनशिप को विकसित करने की कार्ययोजना क्रियान्वित हो रही थी। गैरसैंण को चारों तरफ से जोड़ने के लिये गैरसैंण सड़क, टनल निर्माण निगम का गठन किया गया। कर्मचारियों, शिक्षकों व निकाय तथा पब्लिक अन्डरटेकिंग कर्मियों को सातवें वेतन आयोग का पूर्ण लाभ देने की व्यवस्था भी, बजट में कर ली गई थी। अर्द्धकुम्भ बहुत व्यवस्थित ढंग से आयोजित हुआ। राज्य आपदा से उभर कर तेजी से आगे बढ़ रहा था।

सन 2013 की भंयकर त्राश्दी से राज्य को उबार कर, विकास के रास्ते में खड़ा करना बड़ी चुनौती थी। मेरी सरकार ने इस कार्य को, जो प्रारम्भ में असम्भव लगता था, सम्भव बनाकर दिखाया। 2015-16 में कर संग्रह में 19 प्र्रतिशत की वृद्धि दर्ज कर, राज्य ने तीव्र विकास के लिए धन जुटाने का रास्ता पा लिया था। बेरोजगारी की वृद्धि दर 7 प्रतिशत से गिरकर 2.5 प्रतिशत पर आ गई थी। यह एक बड़ी उपलब्धि थी। जन असंतोष व जन आन्दोलन की सम्भावनायें, नहीं के बराबर थी।

विकास दर का वर्ष 16-17 में 8 प्रतिशत से ऊपर रहना निश्चित था। लघु व सूक्ष्म उद्योगों का तेजी से विस्तार हो रहा था। ईज इन डूईंग बिजनेस में हम देश भर में 9वें स्थान पर थे। 24 घंटे, सबसे सस्ती बिजली की उपलब्धता, हमारा साईन बोर्ड थी। प्रति व्यक्ति आय बढ़कर एक लाख इक्हत्तर हजार रूपया पहुंच गई थी। मृदा व मानस दोनों के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुये, मृदा परिक्षण का व्यापक कार्यक्रम चलाया गया, जो अब शिथिल पड़ गया है।

मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना क्रियान्वित की जा चुकी थी। मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा के ग्यारह लाख चिकित्सा बीमा कार्ड वितरित हो चुके थे, एपीएल कार्ड धारकों को भी राज्य, सस्ता गेहूं, सस्ता चावल दे रहा था। हर प्रकार की पेंशन हमारी सरकार की पहचान बन चुकी थी। यदि मैं कहूं कि, हमने कल्याण पेंशन को, अपने नागरिक का अधिकार बना दिया था, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। सोलह प्रकार की पेंशनें संचालित हो रही थी, यह अपने आप में देश भर में रिकार्ड है। सात सौ बड़ी सड़कों पर काम चल रहा था। छोटी सड़कों की पूर्ति के लिये मेरा गांव-मेरी सड़क योजना काम कर रही थी। इस योजना के तहत तीन सौ से अधिक सड़कें बन रही थी। राज्य भर में चौदह सौ नई बड़ी सड़कों का निर्माण किया जाना तय कर लिया गया था। इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु बजट की व्यवस्था कर सड़कों के निर्माण को अनुमोदित कर दिया गया था।

महिला कल्याण, बाल कल्याण, गरीब, वृद्धा, विकलांग कल्याण का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं था, जहां मेरी सरकार की कोई न कोई योजना लोगों की मद्द के लिये संचालित न हो रही हो। आंगनबाड़ी, आशा, दायी माॅ, भोजनमातायें लगातार मेरी सरकार की प्राथमिकता सूची में रही। संस्कृति, पर्यावरण, साहसिक पर्यटन और स्थानीय विशेषताओं का समावेश कर हमारे द्वारा तरक्की की नई राह बनाई गई। मेरी सरकार एक इनोवेटिक सरकार थी। जनोउन्मुखी आर्थिक विकास के मंत्र पर हम कार्य कर रहे थे।

शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में शिक्षकों व चिकित्सकों के अभाव को दूर करने के लिए हमने चिकित्सा चयन बोर्ड, उच्च शिक्षा बोर्ड के माध्यम से वाक इन भर्ती प्रणाली प्रारम्भ की। डैन्टिस्टों की अग्रिम प्रशिक्षण आधारित नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारम्भ की जा चुकी थी। शिक्षा के क्षेत्र में हमने मॉडल स्कूल व राजीव गांधी अभिनव स्कूल योजना क्रियान्वित की, जिसकी सर्वत्र सराहना हुई। शिक्षा विभाग में प्राईमरी शिक्षा से उच्च शिक्षा तक हमने बड़े पैमाने पर भर्तियां कर, शिक्षा विभाग में लम्बे समय से चल रही रिक्तियों को भरा। शिक्षा विभाग में आरक्षित पदों का बैकलॉक भी लगभग समाप्त किया गया। यह अपने आप में एक इतिहास है। चार सौ के करीब प्राईवेट स्कूलों को मान्यता देना, बड़ी संख्या में मदरसा शिक्षा को बढ़ावा देना तथा उसमें आवश्यक सुधार लाना, बड़ा कदम था। राज्य का अधिनस्थ सेवा चयन आयोग गठित कर हमने नियमित अन्तराल में भर्तियों का रास्ता प्रशस्त किया। अकेला लोक सेवा आयोग यह सब कर पाने में असमर्थ था। राज्य में एक छोटे अन्तराल में, तीस हजार भर्तियों के अधियाचन जारी हुये। जिसमें से वर्ष 2017 तक 20 हजार भर्तियां हुई हैं। शिक्षित बेरोजगारी को कम करने पर हमारी सरकार का यह एक संगठित प्रयास था।

परम्परागत खेती, परम्परागत उत्पादों, परम्परागत शिल्प (एपण आदि), परम्परागत व्यंजनों, वस्त्रों, आभूषणों, मेलों, सांस्कृतिक मण्डलों को प्रोत्साहन देकर, हमारी सरकार ने उत्तराखण्डियत व उत्तराखण्डी अर्थव्यवस्था में समन्वय स्थापित किया। यदि यह समन्वय सत्त प्रोत्साहन पाता रहा, इसी में पलायन का उपचार भी निहित है। ढोल, जागर, जगरिये इस परिवर्तित सोच के प्रतीक के रूप में स्थापित हुये। जागेश्वर में मुंशी हरिप्रसाद टम्टा परम्परागत शिल्प संस्थान, गोचर में उत्तराखण्डी भाषा बोली उन्नयन संस्थान की स्थापना उत्तराखण्ड की भविष्य की दिशा के बोधक हैं। दुःख की बात है, वर्तमान सरकार इन दोनों महत्वपूर्ण संस्थानों के लिए धन नहीं दे रही है। उत्तराखण्डी रेशा व काष्ट शिल्प प्रोत्साहन हेतु नन्दा देवी हैण्डीक्राफ्ट हैण्डलूम ऐक्सिलैन्स सेन्टर भी हमने स्थापित किया। रेशा प्रोत्साहन योजना के तहत भीमल, रामबांस, कण्डाली, भागुले के रेशों की खरीद को प्रोत्साहित किया। आज अमेजोन कम्पनी उत्तराखण्ड में इन रेशों से बने उत्पादों की मार्केटिंग कर रही है। खेल-कूद में दो अन्तर्राष्ट्रीय स्टेडियम, स्पोर्टस काॅलेज, तीन शीतोष्ण खेलों के स्टेडियम पौड़ी, लोेहाघाट, मुनस्यारी की स्वीकृति व स्थापित काॅलेज व स्टेडियमों में आधुनिक खेल सुविधा विकसित कर, राज्य 2018 में राष्ट्रीय खेलों की मेजबानी के लिए तैयार हो चुका था। रायपुर स्पोर्ट्स काॅलेज व पैवेलियन ग्राउण्ड में कई खेलों की सुविधायें राष्ट्रीय स्तर की बनाई गई। हरिद्वार में स्टेडियम, टिहरी, हल्द्वानी, काशीपुर के पुराने स्टेडियमों सहित दस स्टेडियमों को आधुनिक बनाया गया। अल्मोड़ा में बैटमेन्टन हॉल बनाने की स्वीकृति दी गई।

वानिकी हमारी जीडीपी का सुप्त क्षेत्र है। हमने वनों का जल संग्रहण, जड़ी-बूटी उत्पादन तथा इकोटूरिज्म के लिये, उपयोग प्रारम्भ कर, जंगलों को लकड़ी उत्पादन से आगे बढ़ाकर, बहुउपयोगी बनाने की कार्ययोजना को आगे बढ़ाया। इकोटूरिज्म काॅरपोरेशन का गठन कर, वन रोजगार की नई सम्भावनायें पैदा की गई। हमारे वृक्ष-हमारा धन योजना में स्थानीय व रस्टिक फलों व चारा, रेशा, कोमल काष्ट वृक्षों के रोपण को बढ़ावा देकर कृषि बागवानी की नई दिशा क्रियान्वित की गई। राज्य में बड़े पैमाने पर अखरोट, नीबू, चूलू, भीमल, पदम, तेज पत्ता, तिमरू, तुन, सेमल, च्यूरा, महुवा, गेठी जैसे पौधों का रोपण हुआ है। हमारी इस योजना का प्रभाव वर्ष 2020 तक दिखाई देने लगेगा।

राज्य में आज जितने फ्लाई ओवर या आरओबी बने हैं या बन रहे हैं, उनका निर्माण हमारे समय में प्रारम्भ हुआ या वे पूर्ण हुये। हमने शहरीकरण को सुव्यवस्थित बनाने के लिए मसूरी को माॅडल के रूप में व्यवस्थित किया। नगरीय व्यवस्था को सुधारने के लिए हमने देहरादून के चाय बागान क्षेत्र में स्मार्ट देहरादून बनाने की योजना पर काम प्रारम्भ किया। हमारा लक्ष्य था, देहरादून से अर्जित धन का उपयोग हम राज्य में 26 नई स्मार्ट टाउनशिप बनाने के लिए करेंगे। प्रथम माॅडल के रूप में हमने भराड़ीसैंण, गरूड़ाबाज, मुक्तेश्वर व चिन्यिालीसौंड़ में प्रारम्भिक कार्य भी प्रारम्भ किया। लक्ष्य था, नये ग्रोथ सेंटर तैयार कर शिक्षा व स्वास्थ्य के लिए हो रहे पलायन को, उन्हीं क्षेत्रों में रोका जाय। हमारे कार्यकाल में हमने दो दर्जन नगर पालिकायें व नगर पंचायतें गठित की। तहसीलों की संख्या को दुगना कर प्रशासन आपके द्वार सिद्धांत को क्रियान्वित किया। हमारी सरकार ने इंजीनियरिंग, स्पोर्ट्स, नर्सिंग व मेडिकल काॅलेजों को स्वीकृत किया। एक भविष्योउन्मुख दृष्टिकोण से हम आगे बढ़ रहे थे। किसानों की उपज की खरीद सुनिश्चित रूप से हो रही थी, गन्ने का प्रतिवर्ष भुगतान हो रहा था। चीनी मिलों को लाभदायक बनाने हेतु उन्हें विद्युत प्लांट व आबकारी प्लांट लगाने की अनुमति दी गई। 4 चीनी मिलों के आधुनिकरण हेतु वित्तीय व्यवस्था भी की गई।

परम्परागत फसलों व फलों के न्यूनतम खरीद मूल्य तय कर उत्पादकों को प्रति क्विंटल बोनस भी दिया गया। परम्परागत कृषि व बागवानी उत्पादों की खपत बढ़ाने के लिये दर्जनों पहलें प्रारम्भ की गई। भूमि सुधार राज्य में एक बड़ा सवाल था। लगभग डेढ़ लाख दलित भूमिहीन, शिल्पकार, वर्षों से मात्र पट्टाधारक या कब्जाधारक थे। हमने उन्हें मालिकाना हक देने का शासनादेश जारी किया। कुमाऊं की तराई व भावर में, काश्त भूमि के कई वर्गीकरण थे। वर्ग-3, वर्ग-4 से लेकर वर्ग-10ख तक अनेकों भू नामकरण थे। लोग काश्तकारी कर रहे थे। कुछ के पास पट्टे थे, कुछ के पास दस्तावेज भी नहीं थे। हमने इन सबको भी मालिकाना हक देने का शासनादेश जारी किया। नजूल भूमि के निस्तारण के लिए भी हमने, बहुत पुराने सर्किल रेटों के आधार पर नियमितिकरण का शासनादेश जारी करवाये। लालकुंआ में सरकारी भूमि के कब्जेदारों को दिया गया मालिकाना अधिकार इसका ज्वलन्त प्रमाण है। हमारी सरकार ने स्लम एरियाज के कब्जेदारों को मालिकाना हक देने का कानून बनाया। देहरादून में रिवर फ्रन्ट डेवलेपमेंट की योजना बनाकर एक अभिनव प्रयास प्रारम्भ किया। यदि इस प्रयास पर राजनैतिक बदलाव के बाद, ब्रेक नहीं लगता तो, रिस्पना, बिंदाल, सौंग रिवरफ्रन्ट उत्तराखण्ड के लिए गर्व का विषय होते। रिवर फ्रन्ट डैवलेपमेंट कार्य वर्तमान सरकार ने रोक दिया है। हमारे बनाये गये मलिन बस्तियों के मालिकाना हक के कानून का, दूसरे राज्यों ने भी अनुकरण किया है।

हमारा बनाया कानून, मॉडल कानून के रूप में काम कर रहा है। 34 हजार घर बनाने की योजना का हमने रूद्रपुर व देहरादून से शुभारम्भ किया। लक्ष्य था 2020 तक प्रत्येक उत्तराखण्डी के पास अपनी पक्की छत हो। मैं 2016 में राज्य में नया भूमि बन्दोबस्त करवाना चाहता था, मैंने उसकी तैयारी भी प्रारम्भ करवा दी थी। उसी दिशा को आगे बढ़ाने के लिए पर्वतीय चकबन्दी का कानून भी विधानसभा से पारित करवाया गया। मैं चाहता था, भूमि व्यवस्था प्रबन्धन में उत्तराखण्ड माॅडल राज्य बने।

राज्य को पहली मैट्रो देने के लिए हमने मैट्रो कॉरपोरेशन का गठन कर एमडी की नियुक्ति भी कर दी थी। राज्य अवस्थापना निगम को फ्लाई ओवर, पुल, रोपवे, टनल निर्माण निगम के रूप में गठित कर रोपवेज व टनल निर्माण का रास्ता प्रशस्त किया गया। जिसका लाभ वर्तमान सरकार उठा सकती है। नारसन से मुनस्यारी-चौदास तक, जसपुर से गंगोत्री तक हमारी सरकार कुछ न कुछ प्रत्येक क्षेत्र के लिए कर रही थी।

बिना केन्द्र की मद्द से हमारी सरकार ने, पूर्ण कुम्भ से ज्यादा निर्माण कार्य अर्द्धकुम्भ में करवाये। अर्द्धकुम्भ में करवाये गये कार्य आज भी देखे जा सकते हैं। भविष्य के कुम्भ के समय चारों ओर निकासी मोटर मार्ग रहे, इस हेतु कनखल-लक्सर-पुरकाजी राष्ट्रीय राजमार्ग व उसी तर्ज पर रोशनाबाद-बुग्गावाला-बिहारीगढ़ मोटर मार्ग को भी 14 पुलों के साथ निर्मित किया गया। राज्य में पहली बार कलियर शरीफ, रीठा साहिब व हेमकुण्ड साहिब के विकास की योजना बनाकर कार्य प्रारम्भ हुआ। नदियों पर बन्दे बनाकर भूमि कटाव रोकने के लिए गंगा, बाणगंगा, सोनाली, कोसी, रामगंगा, सरयू, गौरी, काली, अलकनन्दा, भागीरथी, पिण्डर, मन्दाकनी सहित प्रत्येक नदी पर, बालावाला से असीगंगा, उत्तरकाशी, खेड़ी, शिकोहपुर से जौलजीवी, चन्द्रपुर, थराली, देवाल तक बनाये गये तटबन्ध देखे जा सकते हैं।

हमारी सरकार ने राज्य में तकनीकी शिक्षा का बड़ा ढांचा तैयार किया है। राज्य में वर्तमान समय में 75 राजकीय पाॅलीटैक्निक और 155 आई0टी0आईज में आधे पॉलीटैक्निक व आईटीआईज मेरे कार्यकाल में खुले। 8 इंजनियरिंग काॅलेजों में 4 हमारे समय में अस्तित्व में आये। यही स्थिति एएनएम, जीएनएम संस्थानों की भी है। हमने राज्य में पहला यूनानी कॉलेज भी स्वीकृत करवाया। एमएसडीपी सहित केन्द्र शोषित योजनाओं के क्रियान्वयन व इन योजनाओं में धन खर्च करने में राज्य का रिकार्ड बहुत अच्छा था। एक सुव्यवस्थित राज्य के रूप में उत्तराखण्ड आगे बढ़ रहा था। दूर-2 कहीं भी वक्त की काली छाया नहीं दिखाई दे रही थी। हमारा हर कदम विश्वासपूर्वक आगे बढ़ रहा था। कांग्रेस पार्टी बहुत समय बाद अपनी संख्या के आधार पर बहुमत प्राप्त कर चुकी थी, सदन में कांग्रेस सदस्यों की संख्या 38 हो चुकी थी। मंत्रिमण्डल में पूर्ण एका था, लम्बी-2 मंत्रिमण्डलीय बैठकों में हम विस्तृत विवेचन के आधार पर निर्णय लेते थे। प्रत्येक सदस्य का प्रयास प्रस्तुत मुद्दे पर निष्कर्ष को और सम्पुष्ट करना रहता था। सार्वजनिक रूप से कभी कोई बड़ा मतभेद का मुद्दा नहीं उठा। विकास आधारित जनकल्याण एक मात्र प्रकट लक्ष्य था, कहीं दूर-2 तक दल-बदल या राष्ट्रपति शासन जैसी संभावनायें दिखाई नहीं देती थी।

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