…तो कर्णप्रयाग में धरे रह जाएंगे BJP और कांग्रेस के अरमान !
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में इस बार सत्तारुढ़ कांग्रेस और विपक्षी पार्टी भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है। 15 फरवरी को राज्य की 70 विधानसभा सीटों में से 69 सीटों के लिए हुए मतदान से पहले एक – एक सीट को जीतने के लिए दोनों ही पार्टियों ने पूरी ताकत चुनाव प्रचार
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में इस बार सत्तारुढ़ कांग्रेस और विपक्षी पार्टी भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला माना जा रहा है। 15 फरवरी को राज्य की 70 विधानसभा सीटों में से 69 सीटों के लिए हुए मतदान से पहले एक – एक सीट को जीतने के लिए दोनों ही पार्टियों ने पूरी ताकत चुनाव प्रचार में झोंक दी थी। अब ख़बरें एक क्लिक पर इस लिंक पर क्लिक कर Download करें Mobile App –https://play.google.com/store/apps/details?id=app.uttarakhandpost
अलकनंदा तथा पिण्डर नदियों के संगम पर स्थित कर्णप्रयाग विधानसभा सीट पर 9 मार्च को मतदान होना है तो यहां पर भी दोनों ही दल अपने –अपने पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हुए हैं। गौरतलब है कि इस सीट पर बसपा उम्मीदवार की मौत के चलते चुनाव स्थगित हो गया था, जिसके बाद अब यहां पर 9 मार्च को मतदान होगा, जबकि सभी 70 विधानसभा सीटों के लिए मतगणना 11 मार्च को ही होगी।
कर्णप्रयाग विधानसभा सीट के इतिहास पर नजर डालें तो सामने आता है कि राज्य गठन के बाद से हुए तीन विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा का दबदबा रहा है। 2002 और 2007 में भाजपा ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी लेकिन पिछले चुनाव में इस सीट को कांग्रेस ने भाजपा से 227 वोटों के मामूली अंतर से छीन लिया था।
कर्णप्रयाग विधानसभा सीट पर एक बार फिर से भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने हैं। भाजपा ने इस सीट पर पिछले चुनाव में 227 मतों से हारने वाले सुरेन्द्र सिहं नेगी को ही मैदान में उतारा है तो कांग्रेस ने मौजूदा विधायक अनुसुईया प्रसाद मैुखुरी पर ही भरोसा जताया है।
भाजपा अपनी इस पुराने गढ़ को जीतने के लिए पूरा जोर लगा रही है तो कांग्रेस किसी भी कीमत पर इस सीट को गंवाना नहीं चाहती है। लिहाजा दोनों ने इस सीट पर मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाने के लिए लिए पूरी ताकत झोंक दी है।
इस सीट का रोचक पहलू इस बार ये है कि बसपा ने अपने बसपा ने मृतक उम्मीदवार की पत्नी को मैदान में उतारकर मुकबाला त्रिकोणीय बना दिया है। दरअसल बसपा सहानुभूति लहर के सहारे इस सीट को जीतने की कोशिश में हैं। अगर जनता का सहानुभूति बसपा उम्मीदवार की ओर चली गई तो कर्णप्रयाग सीट पर बीजेपी और कांग्रेस की जीत के अरमान धरे रह जाएंगे और राज्य में पहली बार पहाड़ की किसी सीट पर ये बसपा की पहली जीत होगी।
बहरहाल इस सीट पर जीत का दावा भले ही सारी पार्टियां कर रही हों लेकिन बाजी कौन मारेगा ये तो कर्णप्रयाग विधानसभा की जनता को ही तय करना है। वैसे भी इस सीट पर उम्मीदवारों को मतदाताओं के फैसले के लिए लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा क्योंकि मार्च को मतदान के एक दिन बाद ही 11 मार्च को मतगणना का दिन है।
तो क्या ‘हरदा’ ने नतीजों से पहले ही मान ली है कांग्रेस की हार ?
बहुमत छोड़िए, क्या इन सीटों पर जमानत बचा पाएंगे BJP उम्मीदवार ?
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