"रात के एकांत में अपने को कोसता हूं "बड़ी देर कर दी है समझदारी मैय्या तूने आते-आते"

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"रात के एकांत में अपने को कोसता हूं "बड़ी देर कर दी है समझदारी मैय्या तूने आते-आते"

harish rawat pushkar dhami

"रात के एकांत में अपने को कोसता हूं "बड़ी देर कर दी है समझदारी मैय्या तूने आते-आते"! लोगों ने देश भर के एयरपोर्टों, पेट्रोल पंपों, रेलवे स्टेशनों और हर चौराहे पर राज्य के अपनी भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड की फोटो टांग दी है और तुम्हारी समझ बौड़म रही इसलिये तुम सीबीआई के मुकदमे के झटके को झेल रहे हो!!"


 

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक बार फिर से धामी सरकार पर तीखा प्रहार किया है। हरदा ने इन्वेस्टर समिट के बहाने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं। नीचे पढ़िए हरदा की फेसबुक पोस्ट-

हरीश रावत ने लिखा- भाजपा ने चुनाव के वक्त में एक नारा दिया "#धामी_की_धूम"!! जनता ने वह नारा तो सफल कर दिया। अब धामी आजकल इन्वेस्टमेंट की धूम मचाए हुए हैं। मगर यह धूम अभी केवल वक्तव्यों और विज्ञापनों तक है। दिल्ली में भी मुख्यमंत्री जी ने संभावित इन्वेस्टर्स को टटोला और कुछ समय यहां बिताया भी है‌। ज्ञात हुआ है कि कुछ रोड शो भी करेंगे। मुझे किसी ने बताया कि उन्होंने किसी फिगर एक्सपर्ट की मदद भी ली है ताकि रोड शो में उनकी चमक कुछ और बढ़ जाएं, हमारी शुभकामनाएं।

यूं भी मुख्यमंत्री स्मार्ट और जवान हैं। मैंने इधर देखा कि हवाई अड्डे, रेलवे के प्लेटफार्म, रेल के डिब्बों, बसों, पेट्रोल पंपों सहित दूसरे राज्यों की राजधानी में भी मोदी जी के साथ भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड की उद्घोषणा करते मुख्यमंत्री जी की स्मार्ट फोटोज दिखाई दे रहे हैं। अब एक दूसरी फोटो इन्वेस्टमेंट स्मार्ट मुख्यमंत्री की दिखाई देगी! उत्तराखंड के तो हर चौराहे पर नजर आएगी। देश के कुछ ही मुख्यमंत्री विज्ञापन प्रेमी हैं और उसमें फोटोजनिक फेस वाले मुख्यमंत्री तो एक दो ही हैं। हमारे मुख्यमंत्री जी ने माननीय नरेन्द्र मोदी और अरविन्द केजरीवाल जी से विज्ञापन मंत्र बड़ी शिद्दत से ग्रहण किया है। यूं भी अर्थव्यवस्था मैनेजमेंट, विकास मैनेजमेंट, प्रशासनिक मैनेजमेंट, आपदा मैनेजमेंट पर तो कई-कई प्रश्नवाचक चिन्ह लगे हुए हैं? हां प्रेस मैनेजमेंट में वो अभी तक के उत्तराखंड के मुख्यमंत्रियों में सबसे उत्कृष्ट नजर आते हैं। 

    

किसी भी इन्वेस्टमेंट के लिए सामान्यतः बड़े भूखंडों की आवश्यकता होती है। हमारी सरकार ने सीलिंग के माध्यम से पराग फॉर्म और खरीद कर काशीपुर में हिन्दुस्तान पेपर मिल की जमीन के साथ-2 एक बड़ा भूखण्ड गदरपुर चीनी मिल का उद्योगों, विस्थापितों व भूमिहीनों के लिए संगठित किया है। हमने काशीपुर में कोटा-राजस्थान की तर्ज पर शिक्षा हब बनाने का निर्णय लिया था।

हिन्दुस्तान पेपर मिल की जमीन को चिन्हित कर उस पर चार दीवारी आदि बनाने में पैसा भी खर्च किया था। पराग फार्म में हमारी सरकार ने भूमि को चार हिस्सों में बांटने का फैसला लिया था। एक हिस्सा, हल्द्वानी के निकट कोर्ट के आदेश से विस्थापित होने वाले क्रेशरों के लिए दूसरा पचास एकड़ में महिला उद्यमिता पार्क, शेष भूमि के दो हिस्सों में से एक हिस्सा प्राथमिकता सूची अनुसार भूमिहीनों को और प्राकृतिक आपदा के विस्थापितों को बसाने का निर्णय लिया था। निर्वाचित सरकार पहली सरकार के फैसले को बदल सकती है। भाजपा की सरकारें तो इस मामले में पूर्णतः बेशर्म हैं।

अब बुनियादी प्रश्न है कि क्या इन्वेस्टर्स के लिए उत्तराखंड में भूमि के अतिरिक्त कुछ अन्य आकर्षण उपलब्ध है? 2016 में उत्तराखंड इज इन डूइंग बिजनेस के मामले में देश में 3 से लेकर 5वे नंबर के बीच में ऊपर-नीचे हो रहा था। आज 18वे नंबर पर है। 2016 में उत्तराखंड सबसे सस्ती और 24 घंटे बिजली देने वाला राज्य था, पावर सरप्लस स्टेट था।

आज स्थिति बिल्कुल उलट हो गई है। दक्ष मानव उपलब्धता आईटीआई और पॉलीटेक्निक से निकली हुई दक्ष मानव शक्ति तब भी उपलब्ध थी और आज भी उपलब्ध है। इस क्षेत्र में कुछ विशेष अंतर नहीं आया है। कानून व्यवस्था के क्षेत्र में आज बड़ी गिरावट दिखाई दे रही है। केंद्र और राज्य सरकार के वित्तीय प्रोत्साहन अब कल की बात हो चुके हैं। आज स्थिति यह है कि राज्य में 16 नामचीन औद्योगिक इकाइयां बंद हो गई हैं, दर्जनों इकाइयों ने अपना प्रोडक्शन और मानव शक्ति घटा दी है। सैकड़ों एंसलरीज व छोटे और सूक्ष्म उद्योग बंद हो चुके हैं। राज्य में कहीं भी औद्योगिक वातावरण नहीं दिखाई दे रहा है।

      

हां, नई उद्योग नीति बनाने के सवाल पर भाजपा सरकार ने हमसे बराबरी की है। हमने सूक्ष्म व लघु, जल विद्युत, सूक्ष्म लघु, मध्यम और बड़े उद्योगों के लिए नीति बनाई थी। भाजपा ने उसमें कुछ हेर-फेर कर अपनी मोहर लगा दी है, अच्छी बात है, स्मार्ट पॉलिटिकल मूव है। कुछ दिन सरकारी विज्ञापनों के खर्चे पर यह समाचार सुर्खियों में भी रहा है। लेकिन वस्तुतः धरातल पर इसका कोई सकारात्मक असर नहीं दिखाई दिया है। एक इन्वेस्टर्स समिट 2018 में हुई, शायद इसका नाम "समलौण" रखा गया, बड़ी-बड़ी नामचीन हस्तियां भारत के उद्योग जगत, प्रशासनिक जगत और विशिष्ट नामचीन उत्तराखंडी भी इस सम्मेलन में आए। इसकी तैयारियां G20 के स्केल पर की गई, बड़े-बड़े विज्ञापन भी लगे, करोड़ों रुपया राज्य ने खर्च किया और हमने भी उत्सुकता से देखा और कहा बड़े चमत्कारिक आइडिया पर काम हो रहा है। हमने कहा यह है असली रावत? हम तो छोटे-छोटे कदम उठाकर चलते रहे और यह देखो एक ही छलांग में उत्तराखंड का कायाकल्प कर रहे हैं!

कुल मिलाकर उस समिट में 1 लाख, 20 हजार करोड़ रुपये के 601 एमओयू साइन हुये। मुझसे मेरे एक उद्यमी मित्र ने कहा कि इधर उधमसिंहनगर, हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल में तो इतनी जमीन उपलब्ध ही नहीं है जिसमें 1 लाख, 20 हजार करोड़ रुपए का इन्वेस्टमेंट समा सके। शायद हम उत्तराखंडियों के सर की चांद मिलाकर काम चल जाएगा।

मैंने कहा कुछ होगा आइडिया, देखते हैं!! मगर आइडिया बड़ा छुपा रुस्तम निकला, जब विधानसभा में राजस्व कानून में कुछ परिवर्तन कर उत्तराखंड में जमीनों की खरीद-फरोख्त को खुली छूट दे दी गई। हम चिल्लाये, मगर उत्तराखंड तो 1 लाख, 20 हजार करोड़ रुपये के इन्वेस्टमेंट के आकाश में उड़ रहा था। लोगों को लगा एक हारे हुए नेता व एक हारी हुई पार्टी की चिल्लाहट है और राज्य विधानसभा में भी थोड़ा विरोध श्री मनोज रावत जी ने किया। कानून बन गया। आज उसका परिणाम दिखाई दे रहा है, उद्योग तो नहीं आए, हां हजारों करोड़ रुपये की जमीनों की खरीद-फरोख्त के रूप में उत्तराखंड जरूर बदल गया। वनंतरा रिजॉर्ट्स संस्कृति दूर-2 पहुंच गई। हर गाड़-हर धार की अच्छी जमीन बिक गई हैं। वनंतरा रिजॉर्ट जैसे सैकड़ों रिजॉर्टो के लिए लोगों ने जमीनें खरीद ली हैं। कई क्षेत्रों में तो स्थिति यह है कि वहां के गांवों में अब ग्राम प्रधान के चुनावों में भी गांव का मूल निवासी नहीं जीतेगा! ब वास्ते भाजपा बड़ी नजर रखनी चाहिए! मूल प्रश्न है कि पहले इन्वेस्टर्स समिट ने हमसे हमारी सांस्कृतिक धरोहर, जैव विविधता की धरोहर और हमारी परंपराओं, बाप-दादाओं की जमीन से हमारे लगाव को छीन लिया।

एक समय ऐसा आयेगा कि जब बाहर प्रवास कर रहे किसी उत्तराखंडी का पराक्रमी बेटा कुछ कमाकर अपने बाप-दादा की धरती पर वापस आना चाहेगा और उद्यम लगाने की सोचेगा तो उसके लिए भी जमीन बचेगी या नहीं बचेगी, यह दृढ़तापूर्वक नहीं कहा जा सकता है। वकौल भाजपा नजर ऊंची रखनी चाहिए! धामी जी ने ऊंची नजर रखी है, उन्होंने पहले इन्वेस्टर्स समिट में क्या हुआ उसकी गाथा को याद करने और उससे सबक लेने का जिम्मा विरोध पक्ष को दे दिया है।

अब श्री धामी बड़ी छलांग लगाने जा रहे हैं, उन्होंने अपने इन्वेस्टमेंट लक्ष्य को भी घोषित कर दिया है। उन्होंने युवाओं को भी दूर चांद सितारे दिखा दिये हैं और युवाओं से कह रहे हैं कि चिंता मत करो हजारों करोड रुपए का इन्वेस्टमेंट आ रहा है। बेरोजगारों की राज्य में एक बड़ी संख्या है! शिक्षित बेरोजगार लड़के-लड़कियां लोकसभा चुनाव से पहले रोजगार के सवाल को बड़े पैमाने पर उठाने जा रहे हैं। क्योंकि नौजवान, अग्निवीर का खेल समझ गया है। उसने अपने कैरियर बचाने के लिए भले ही अग्निवीर का विरोध छोड़ दिया हो, मगर अग्निवीर को लेकर उसका मुगालता दूर हो चुका है।

सरकारी नौकरियों में भी वह लगातार एक खेल होता देख रहा है। वह समझ गये हैं कि बिना कुछ दिए, सरकार उसको सब कुछ देने का झांसा दे रही है। इस दौरान नौकरियों को लेकर घटनाक्रम कुछ ऐसा चला कि सरकार की पूरी पोल पट्टी खुल गई और उसके विचारों को भी नौजवान समझ गये। अब उस नौजवान के सामने श्री पुष्कर सिंह धामी ने एक बड़ा सपना खड़ा कर दिया है। नौजवान को सोचने को कहा जा रहा है कि श्री धामी धाकड़ इन्वेस्टर समिट की धूम में नौकरियों की बौछार लायेंगे। वह किसी सरकारी विभाग का कर्मचारी नहीं हो सका, कोई बात नहीं। श्री धामी भैया उसे किसी फैक्ट्री का श्रमिक जरूर बना देंगे।

नौजवान की बाध्यता जन्य टकटकी को देखकर मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही है कि मैं इन्वेस्टर्स समिट-2 पर कुछ सवाल खड़े कर सकूं!! बस केवल अपने मन से कह रहा हूं कि हरीश रावत कहां तुम दुनिया, देश भर में घूमते रहे, सारे राजनीतिक तीर्थ नहा लिये लेकिन इतनी छोटी सी अकल नहीं आई कि सरकारी खर्च पर एक इन्वेस्टर्स समिट का कुंभ नहा लो! हां, रात के 2-3 बजे तक लोगों की अर्जियों में लिखते रहे कि पांच हजार मंजूर, दो हजार मंजूर, पचास हजार मंजूर उस करोड़ों रुपए को इन विज्ञापनों पर खर्च करते तो कुछ लोगों में तुम्हारी पहचान बढ़ जाती और तुम भी धाकड़ न सही, मक्कड़ कहलाते।

रात के एकांत में अपने को कोसता हूं "बड़ी देर कर दी है समझदारी मैय्या तूने आते-आते"! लोगों ने देश भर के एयरपोर्टों, पेट्रोल पंपों, रेलवे स्टेशनों और हर चौराहे पर राज्य के अपनी भ्रष्टाचार मुक्त उत्तराखंड की फोटो टांग दी है और तुम्हारी समझ बौड़म रही इसलिये तुम सीबीआई के मुकदमे के झटके को झेल रहे हो!!

खैर इन्वेस्टर्स समिट के लिए राज्य को शुभकामनाएं। सीधे-सीधे 25 लाख करोड़ रुपये के प्रस्ताव आएंगे, जमीन पर न सही रात को सपनों में आएगा। हो सकता है दिन-दहाड़े भी सपनों में आ सकता है। भगवान बद्रीनाथ, केदारनाथ, जागनाथ, बागनाथ, उत्तराखंड की बची-खुची धरती की रक्षा करना।

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