भू-घोटाला आज उत्तराखंड की पहचान बन गया है, BJP ने भू घोटालों को शिष्टाचार बना दिया है: हरीश रावत

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भू-घोटाला आज उत्तराखंड की पहचान बन गया है, BJP ने भू घोटालों को शिष्टाचार बना दिया है: हरीश रावत

Harish

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य की धामी सरकार पर करारा प्रहार किया है। हरदा ने कहा कि भू घोटाला आज उत्तराखंड की पहचान बन गया है। हरीश रावत ने एक लंबी फेसबुक पोस्ट लिख कर धामी सरकार पर वार किया है।


 

हल्द्वानी (उत्तराखंड पोस्ट) पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने राज्य की धामी सरकार पर करारा प्रहार किया है। हरदा ने कहा कि भू घोटाला आज उत्तराखंड की पहचान बन गया है। हरीश रावत ने एक लंबी फेसबुक पोस्ट लिख कर धामी सरकार पर वार किया है।

नीचे पढ़िए हरदा की पूरी पोस्ट-

हरीश रावत ने लिखा- भू_घोटाला आज उत्तराखंड की पहचान बन गया है। भाजपा ने भू घोटालों को शिष्टाचार बना दिया है, न केवल फर्जी रजिस्ट्रियां हो जा रही हैं बल्कि दूसरे के नाम की जमीनें भी किसी और के नाम पर चढ़ा दी जा रही हैं। यदि आप देहरादून के किसी भी कोने से मसूरी की तरफ को चलिए तो आपको हर एक किलोमीटर के अंदर एक-दो भू घोटालों के गुम्बद मिल जाएंगे। नदियों के किनारे, नाले-खाले, सब सीमेंट की बिल्डिंगों से आच्छादित हो गए हैं। मसूरी को टेक देने वाली शिव मंदिर के पास की पहाड़ी भी कितने दिनों की मेहमान है, यह केवल भगवान शिव ही बता सकते हैं!

हरदा ने आगे लिखा- राजपुर रोड में बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं बनाई जा रही हैं, कहां टाउन प्लानर सोए हुए हैं? कहां पर्यावरण विद् सोए हुए हैं? कहां जागृत जनमत सोया है ? मुझे आश्चर्य होता है‌। मैं देहरादून में यह पूरा खुला खेल देख रहा हूं, तो राज्य के दूसरे हिस्सों में क्या कुछ हो रहा है इसकी कहानी बहुत लंबी बन जायेगी।

पूर्व सीएम ने कहा- डोईवाला में इंटीग्रेटेड सिटी के नाम से किसानों की जमीन हड़पने की चेष्टा हो रही है। मुझे मालूम है दो बहुत बड़े धनाढ्य, आईडीपीएल और डोईवाला क्षेत्र को जिस तरीके से हो लेना चाहते हैं। देश में कई जगह नई-नई सिटीज बन रही हैं उसी तरीके की सिटीज बनाने के लिए लेना चाहते हैं और सत्ता प्रतिष्ठान उसके लिए फैसिलिटेटर का काम कर रहा है‌। वह करें भी क्या ! जब ऊपर से सैया का इशारा है कि हमारे निकटस्थ हैं तो सारा सत्ता प्रतिष्ठान उनके सामने नतमस्तक होता जा रहा है। किसान हुंकार भर रहे हैं, आईडीपीएल में वहां के लोग हुंकार भर रहे हैं, हम भी उनके साथ मनसा वाचा कर्मणा से जुड़े हुए हैं।

हरदा ने आगे लिखा-  इन भू-खोरो की नजर पंतनगर के कृषि विश्वविद्यालय पर भी है जहां संस्था हमारी शान है। एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के नाम पर उसकी जमीन को हड़प लेना चाहते हैं। अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के नाम पर पराग फार्म की जिस भूमि को सीलिंग से निकलवाकर हमने किसी तरीके से कानूनी दाव-पेंच के माध्यम से बचाया और उस जमीन को संरक्षित किया, उसको इन धन्ना सेठों को सौंपा जा सके!! हमने सोचा था कि इस जमीन पर कुछ हिस्से में भूमिहीन, कुछ हिस्से में आपदा पीड़ित और कुछ हिस्से महिला उद्यमिता और छोटे उद्यमियों को बसाने का काम किया जाएगा। लेकिन उस जमीन पर भी इंटीग्रेटेड आइडियाज के लोगों की नजर है।

हरीश रावत ने लिखा- नजर उनकी काशीपुर और गदरपुर की चीनी मिल की भूमि पर भी है। देखते हैं बकरे की मां कब तक खैर मनाती है !! सत्ता प्रतिष्ठान तो इन्वेस्टमेंट के नाम पर किस सीमा तक उत्तराखंड के हितों पर चोट कर रहा है, इसको आप हर गांव, हर घर में देख रहे हैं। यह केवल बड़े शहरों की कहानी नहीं है।

रुड़की में जो कुछ हो रहा है बल्कि वहां के निर्वाचित प्रतिनिधि भी नग्न होकर के जमीन कब्जाने के खेल में पड़े हैं। हमारे गांव-घर, दूर दराज के क्षेत्र जहां उत्तराखंड की संस्कृति वास करती है, जहां हमारी प्रकृति वास करती है, जहां हमारे देवी-देवता वास करते हैं, जहां हमारी आजीविका वास करती है, उन सुंदर धारों और गाड़ों पर भी इन भूखोरों की नजर बड़ी गहरी पड़ गई है। हमने भराड़ीसैंण की टाउनशिप बनाने के लिए जमीन को नोटिफाइड किया था।

एक सत्ता ऐसी आई जिसने उस भूमि को डिनोटिफाइड कर दिया। नारायण दत्त तिवारी जी से लेकर के हरीश रावत तक सब ने उत्तराखंड की भूमि उत्तराखंड के बेटों के हुनर को सवारने के काम आए इसके लिए एक सख्त नियम बनाया। नारायण दत्त तिवारी जी ने 500 मीटर कहां, मेजर जनरल खंडूरी जी ने उसको घटाकर के ढाई सौ मीटर कर दिया, कहां की कोई गैर उत्तराखंडी यहां की भूमि को नहीं ले पाएगा।

धन्य है भाजपा अपार बहुमत मिला और अपने इन्वेस्टमेंट के नाम पर उस आदेश को शिथिल कर दिया। आपको उन लोगों की याद नहीं आई जिनके लिए हमने मंत्रिमंडल के फैसले लिए, कानून बनाए, नालों-खालों, मलिन बस्तियों के लिए, हमारे दलित भाइयों जो जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों पर काबिज हैं उनके लिये पूर्व सैनिकों, छोटे किसानों उन सब की याद नहीं आई आपने कानून शिथिल कर दिया, आज उसका परिणाम है कि शायद कोई धार या गाड़ बची है जहां कहीं न कहीं वनंतरा रिजॉर्ट बनाने वाला न पहुंच गया हो! अंकिता जैसी हर घर की बेटी के लिए खतरा है यह संस्कृति। कहां जाएंगे उत्तराखंड के लोग! समय के साथ उत्तराखंड के लोग भी तरक्की कर रहे हैं‌।

हमारे लोग प्रतिभावान हैं, क्षमता वान हैं, संघर्षशील हैं, मगर जब उनके पास अपनी धरती में पांव टेकने लायक जमीन नहीं रहेगी तो आज की पीढ़ी भी, कल की पीढ़ी भी, कहां अपने लिए जमीन तलाशेगी? यही कारण है सत्ता पलायन को रोकने के लिए गंभीर नहीं है! 2017 के बाद पलायन की गति लगभग तीन गुना बढ़ गई है। कभी आवाजें उठती हैं कि सख्त भू कानून, उत्तराखंड मांगे भू कानून, बड़ी कर्णप्रिय लगती हैं, मगर आवाज लगाने वाले जन समर्थन न मिल पाने के कारण थककर के या तो चुप हो जा रहे हैं या चुप करा दिए जा रहे हैं। यह संधि काल है उत्तराखंड का!

मैं आज फिर दोहरा रहा हूं, यदि 2017 में कांग्रेस की सरकार आई होती तो 2022 में प्रति व्यक्ति न्यूनतम औसत आय पांच लाख रुपया होती। कुछ क्षेत्रों में 7 लाख से लेकर के 10 लाख रुपए के करीब भी होती। पलायन रोकने के लिए हमने 3 साल अथक प्रयास कर उसी धरती की पहचानों को, उसी धरती के पुत्र के गुणों को, प्रकृति के आशीर्वाद को समावेशित कर योजनाएं बनाई, कुछ योजनाएं खड्ड में दबा दी गई हैं और कुछ को नए नामकरण के साथ, वोकल फॉर लोकल आदि-आदि नारों के साथ बढ़ाया आ रहा है, अच्छा है। मगर जब तक एक योजनागत विकास का लक्ष्य न हो, जब तक एक समाकृत और समग्र समझ न हो तो हमारी पहचान मिट जाएगी। उत्तराखंडियत आज खतरे में है। वस्तुत: #उत्तराखंडियत, गढ़वालियत का ही अक्ष है। कुमाऊं के लोग पहले ही बाहर कदम बढ़ा चुके थे। वहां जब अल्मोड़ियत आभा खो रही है तो फिर कुमाऊंनी संस्कृति तो उसके चारों तरफ खड़ी है न! मगर गढ़वाल, एक मजबूत संकल्प शक्ति का गढ़वाल जिसने राज्य आंदोलन की अगुवाई की वह गढ़वाल भी उत्तराखंडियत की रक्षा के लिए उठ नहीं रहा है!

जौनसार अपनी जौनसारियत की रक्षा के लिए एकजुट है, मैं उनको प्रणाम करता हूं। मैं रंग संस्कृति को भी प्रणाम करता हूं। जौहार और पैन खंडा व थरवाट की संस्कृति धीरे-धीरे डायलूट हो रही है। मिट्टी के चारों तरफ ही संस्कृतियों बढ़ती है व विकसित होती हैं, अपनी आभा बिखेरती हैं। जब जमीन ही छिन रही है तो किसको दोष दें! जब भू नियम के शिथिलीकरण के लिए कानून लाया गया तो मुझे विधानसभा ने बहुत निराश किया और आज की राजनीति भी मुझे कभी-कभी निराश करती है, मेरा दर्द दर्दे जहां है, मगर आज की राजनीति उन लोगों के हाथ में है जो दर्दे तनहा की भावना से केवल अपने पांवों के नीचे की छाया को देखकर बढ़ना चाहते हैं।

मैं युवा पीढ़ी के लोगों से आग्रह करना चाहता हूं कि इन उत्तराखंडियत के क्षरण के चिन्हों को पहचानिए। आप तो दो नसों में खो गए हैं। पहला नशा 2018-19 के बाद संगठित रूप से उत्तराखंड के दूर-दूर गांवों तक में भी फैलाया जा रहा है, यह शराब की नशे से कई गुना ज्यादा खतरनाक नशा है, पूरी कौम को नकारा बना देने वाला नशा है। दूसरा नशा यह मोबाइल का नशा है। खैर इस दूसरे नशे का उपयोग एक अच्छी मानव शक्ति निर्माण के लिए भी हो सकता है, मगर जो पहला नशा है वह तो उत्तराखंड को खंडित कर रहा है। जिन लोगों के हाथ में सत्ता सूत्र हैं या जो प्रभावी लोग हैं उनकी नजर या तो जमीनों पर है या नदियों से लाई हुई बालू और बजरी पर है और बहुत हो गया तो शराब बारों के खोलने दूर-दूर गांवों में खुल रही शराब की दुकानों पर है। हमारे गांव-घरों में एक कहावत है "निम खण रजैकि कथै-काथ, किस-किस प्रसंग को ! मैं आपसे बात करूंगा व करता रहूंगा।

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