तो दोषी पाए गए नेता हमेशा के लिए चुनाव लड़ने से होंगे बैन !
सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब में एक नेता के खिलाफ साल 1983 में दर्ज आपराधिक मामले में 36 साल बाद निचली अदालत द्वारा अभियोग निर्धारित किये जाने पर हैरानी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन का यह कर्तव्य है कि मुकदमे की सुनवाई तेजी से हो।
हिंदी न्यूज 18 की खबर के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी हाईकोर्ट्स से वर्तमान और पूर्व सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की और जानकारी मांगी है। न्यायालय को न्याय मित्र ने सूचित किया था कि 4,442 मामलों में देश के नेताओं पर मुकदमे चल रहे हैं. इनमें से 2,556 आरोपी तो वर्तमान सांसद-विधायक हैं।
12 सितंबर तक मांगी जानकारी-
- जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने अपने आदेश में कहा कि अब हाईकोर्ट्स को 12 सितंबर तक नेताओं के खिलाफ लंबित उन मामलों का विवरण ई-मेल के जरिये देना होगा, जो भ्रष्टाचार निरोधक कानून, धन शोधन रोकथाम कानून और काला धन कानून जैसे विशेष कानूनों के तहत लंबित हैं। बेंच वर्तमान और पूर्व सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों का अवलोकन करेगी और इन मुकदमों की तेजी से सुनवाई के बारे में 16 सितंबर को हाईकोर्ट्स के चीफ जस्टिसों को आवश्यक निर्देश दे सकती है।
क्या है मामला ?
- अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका पर वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने बेंच को वस्तुस्थिति से अवगत कराया और कहा कि उप्र और बिहार जैसे राज्यों में नेताओं के खिलाफ अनेक आपराधिक मामले तो दशकों से लंबित हैं। उन्होंने पंजाब के एक मामले का विशेष रूप से जिक्र किया। हंसारिया द्वारा आधिवक्ता स्नेहा कालिता की सहायता से संकलित की गयी रिपोर्ट में कहा गया है कि पंजाब में साल 1983 में एक अपराध हुआ था जिसके लिये उम्र कैद की सजा हो सकती है लेकिन इस मामले मे 36 साल बाद साल 2019 में अभियोग निर्धारित हुये हैं।
- इस पर बेंच ने नाराजगी व्यक्त करते हुये कहा, 'यह विस्मित करने वाला है। पंजाब में साल 1983 का यह मामला अभी तक क्यों लंबित है?' इसके साथ ही बेंच ने राज्य के अधिवक्ता से इसका जवाब मांगा। यह कहे जाने पर कि यह जानकारी राज्य के हाईकोर्ट्स के दूसरे अधिवक्ता से प्राप्त की जा सकती है, बेंच ने कहा, 'आप सरकार के वकील हैं, आपको बताना होगा कि यह मामला साल 1983 से क्यों लंबित है? क्या आप सुनवाई तेजी से कराने के लिये जिम्मेदार नहीं है?'
- पंजाब का यह मामला डा सुदर्शन कुमार त्रेहन की हत्या से संबंधित है। इस हत्याकांड में शिरोमणि अकाली दल के पूर्व विधायक विरसा सिंह वोल्तोहा का सह आरोपी ने अपने इकबालिया बयान में आरोपी के रूप में नाम लिया था। हालांकि, पंजाब पुलिस ने पूरक आरोपपत्र दाखिल करने में विलंब किया और साल 2019 में अभियोग निर्धारित किये गये। बेंच ने इस दौरान उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह के कथन का संज्ञान लिया और उन्हें याचिका में प्रार्थना में संशोधन की अनुमति दी और केन्द्र से छह सप्ताह के भीतर जवाब मांगा।
- इस संशोधित अनुरोध में कहा गया है, 'प्रतिवादी संख्या-एक (केन्द्र) को जनप्रतिनिधियों तथा लोक सेवकों से संबंधित मामलों के लिये विशेष अदालतें गठित करने तथा एक साल के भीतर इनका फैसला करने का निर्देश दिया जाये और संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये गठित आयोग द्वारा प्रस्तावित चुनाव सुधारों, विधि आयोग की 244वीं और 255वीं रिपोर्ट तथा निर्वाचन आयोग के सुझावों पर अमल कराया जाये।
नयी याचिका में केन्द्र को यह निर्देश देने का भी अनुरोध किया गया है कि जनप्रतिनिधित्व कानून के प्रावधानों के तहत स्पष्ट रूप से चुनाव लड़ने के अयोग्य व्यक्तियों को राजनीतिक दल गठित करने या उनका पदाधिकारी बनने से वंचित करने के लिये उचित कदम उठाये। हंसारिया ने अपने हलफनामे में राज्यों के अनुसार भी मामलों की सूची पेश की है जिनमें उच्चतर अदालतों के स्थगन आदेशों की वजह से मुकदमों की सुनवाई रूक गयी है।
रिपोर्ट के अनुसार शीर्ष अदालत और हाईकोर्ट्स ने 352 मामलों की सुनवाई पर रोक लगायी है। 413 मामले ऐसे अपराधों से संबंधित हैं जिनमें उम्र कैद की सजा का प्रावधान है। इनमें से 174 मामलों में पीठासीन निर्वाचित प्रतिनिधि शामिल हैं।
- रिपोर्ट के अनुसार इस चार्ट में सबसे ऊपर उप्र है जहां विधि निर्माताओं के खिलाफ 1,217 मामले लंबित हैं और इनमें से 446 ऐसे मामलों में वर्तमान विधि निर्माता शामिल हैं। इसी तरह,बिहार में 531 मामलों मे से 256 मामलों में वर्तमान आरोपी हैं।
हलफनामे में सुझाव दिया गया है कि प्रत्येक हाईकोर्ट्स को राज्य में लंबित ऐसे मामलों की प्रगति की निगरानी और शीर्ष अदालत के निर्देशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये ‘सांसद/विधायकों के लिये विशेष अदालत नाम से अपने यहां ‘स्वत:’ मामला दर्ज करना चाहिए। इसमें कहा गया है, 'प्रत्येक हाईकोर्ट्स पूर्व और वर्तमान विधि निर्माताओं से संबंधित मुकदमों की संख्या और मामले की प्रवृत्ति को देखते हुये उन्हें सुनवाई के लिये आवश्यकतानुसार सत्र अदालतों और मजिस्ट्रेट की अदालतों को नामित कर सकते हैं। हाईकोर्ट्स आदेश के चार सप्ताह के भीतर इस तरह का फैसला ले सकते हैं।
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