उत्तराखंड | पहाड़ी के जज्बे को सलाम, कोरोना संकट में 6 महीने से बिना छुट्टी लिए रोजोना 16 घंटे कर रहे हैं काम

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उत्तराखंड | पहाड़ी के जज्बे को सलाम, कोरोना संकट में 6 महीने से बिना छुट्टी लिए रोजोना 16 घंटे कर रहे हैं काम

उत्तराखंड | पहाड़ी के जज्बे को सलाम, कोरोना संकट में 6 महीने से बिना छुट्टी लिए रोजोना 16 घंटे कर रहे हैं काम

उत्तराखंड के अल्मोड़ा के 33 साल के जीतेंद्र देवरारी रोजाना सुबह 6 बजे से कोरोना टेस्टिंग का अपना काम शुरू कर देते हैं। अल्मोड़ा में वो ही अकेले शख्स है जो जो यह काम करते हैं। वह 1 दिन में 16 घंटे अपने काम में लगे रहते हैं।


अल्मोड़ा (उत्तराखंड पोस्ट) उत्तराखंड में लगातार कोरोना का कहर बढ़ता जा रहा है। प्रदेश में लगातार कोरोना के केस बढ़ रहे है। पिछले 24 घंटे में प्रदेश में कोरोना के 4368 मामले सामने आए। इसी के साथ प्रदेश में कुल मरीजों की संख्या 151801 पहुंच गई है। वहीं 44 संक्रमित मरीजों की मौत हुई।

जहां एक तरफ लगातार कोरोना के केस बढ़ रहे है और देश घरों में कैद है। वहीं दूसरी तरफ स्वास्थयकर्मी सब कुछ भूलकर इन हालातों में काम कर रहे है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले से एक खबर सामने आय़ी है जिससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोरोना काल में स्वास्थयकर्मी बने रुक कोरोना से लड़ रहे है।

उत्तराखंड के अल्मोड़ा के 33 साल के जीतेंद्र देवरारी रोजाना सुबह 6 बजे से कोरोना टेस्टिंग का अपना काम शुरू कर देते हैं। अल्मोड़ा में वो ही अकेले शख्स है जो जो यह काम करते हैं। वह 1 दिन में 16 घंटे अपने काम में लगे रहते हैं।

अल्मोड़ा में नहीं टेस्टिंग की सुविधा नहीं है। राज्य सरकार का अल्मोड़ा मेडिकल कॉलेज ही इकलौता संस्थान है जहां कोरोना की टेस्टिंग होती है। यहां 21 डॉक्टरों में से अकेले जीतेंद्र ही माइक्रोबायोलॉजिस्ट है। इनकी 4 लैब टेक्नीशियंस की टीम है जो सैंपल इकट्ठा करती है और रिपोर्ट बनाती है।

जीतेंद्र 6 महीने से लगातार बिना छुट्टी लिए काम पर लगे हुए हैं। इस लैब में रोजाना 900 से 1100 सैंपल टेस्ट होते हैं। जितेंद्र बताते हैं, ‘मैं 25 हजार से ज्यादा सैंपल टेस्ट कर चुका हूं।‘ अल्मोड़ा में बनाई गई इस लैब से 4 घंटे में मिल जाता है।

उन्होंने कहा, ‘इन दिनों काम का दबाव काफी बढ़ गया है। हम यहां 24 घंटे सातों दिन बिना थके काम कर रहे हैं। कभी-कभी मैं खाना खाना ही भूल जाता हूं या फिर इसके लिए समय ही नहीं निकाल पाता लेकिन अभी सबसे जरूरी यही है। जितेंद्र पास में ही रहते हैं इसलिए समय बिल्कुल भी बर्बाद नहीं होता।’

अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट एससी गडकोटी कहते हैं, ‘जीतेंद्र का यहां मौजूद होना हम सभी के लिए एक बड़ा सहारा है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम कितने सैंपल टेस्टिंग के लिए भेज रहे हैं। वह तब तक नहीं जाते जब तक सभी सैंपल्स का टेस्ट नहीं हो जाता।

मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल आरजी नौटियाल ने कहा, ‘जब से हमने यह टेस्टिंग शुरू की है जीतेंद्र ने अपने दम पर इस जिम्मेदारी को संभाला है यहां पहाड़ों पर डॉक्टरों को लाना बेहद मुश्किल है लेकिन उन्होंने एक भी पल इसके लिए हिचक नहीं दिखाई।’ इस लैब के बनने से पहले सैंपल हल्द्वानी भेजे जाते थे और उनके रिजल्ट आने में समय लगता था। कुछ सैंपल बीच में ही गायब भी हो जाते थे।

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