नवनिर्मित मंदिर में विराजमान हुईं मां धारी, आप सब पर मां की कृपा बनी रहे

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नवनिर्मित मंदिर में विराजमान हुईं मां धारी, आप सब पर मां की कृपा बनी रहे

Dhari

उत्तराखंड के लोग लंबे समय से धारी देवी की प्रतिमा को नए मंदिर में स्थापित करने का इंतजार कर रहे थे। 28 जनवरी 2023 को नौ वर्षों के बाद आखिरकार मां धारी देवी अपने नवनिर्मित मंदिर में विराजमान हो गई।


 

देहरादून (उत्तराखंड पोस्ट) जय माँ धारी देवी, माँ धारी आज पूर्ण विधि-विधान के साथ अपने नवनिर्मित मंदिर में विराजमान हो गई हैं।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस अवसर पर कहा कि माँ धीं की कृपादृष्टि सदैव हम पर बनी रहे और सभी का जीवन सुख, शांति व समृद्धि से परिपूर्ण हो ऐसी कामना है।


खत्म हुआ लंबा इंतजार

उत्तराखंड के लोग लंबे समय से धारी देवी की प्रतिमा को नए मंदिर में स्थापित करने का इंतजार कर रहे थे। 28 जनवरी 2023 को नौ वर्षों के बाद आखिरकार मां धारी देवी अपने नवनिर्मित मंदिर में विराजमान हो गई।

28 जनवरी की सुबह शुभ मुहूर्त में धारी देवी, भैरवनाथ और नंदी की प्रतिमाएं अस्थायी परिसर से नवनिर्मित मंदिर में स्थापित कर दी गई, जिसके बाद सुबह 9:30 बजे के बाद मंदिर को भक्तों के लिए खोल दिया गया। पर्वतीय शैली में बना यह मंदिर बेहद आकर्षक है और केदारनाथ-बदरीनाथ जाने वाले तीर्थयात्री यहां से दर्शन कर आगे बढ़ते हैं।

दिन में तीन बार रुप बदलती है मां...

धारी देवी की प्रतिमा को लेकर मान्यता है कि यह प्रतिमा दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है। कहा जाता है कि मां की मूर्ति सुबह के समय एक कन्या के रूप में नजर आती है तो दिन के समय यह एक युवती का रूप धारण कर लेती है, जबकि शाम के समय यह प्रतिमा वृद्धा का रूप ले लेती है।

आपको बता दें कि धारी देवी का मंदिर श्रीनगर से करीब 13 किलोमीटर दूर अलकनंदा नदी किनारे स्थित था। वर्तमान में मां धारी देवी की प्रतिमा की पूजा नदी में ही बने अस्थायी मंदिर में हो रही है, लेकिन धारी देवी का स्थायी मंदिर का निर्माण लगभग चार साल पूर्व कंपनी की ओर से इसी के समीप नदी तल से करीब 30 मीटर ऊपर पिलर पर पर्वतीय शैली में कराया गया। हालांकि, कंपनी और आद्या शक्ति मां धारी पुजारी न्यास में सहमति न बन पाने की वजह से बार-बार प्रतिमाओं की शिफ्टिंग की तिथि आगे खिसकती रही। जिसकी वजह से नया मंदिर भी अब तक खाली ही था।

केदारनाथ में जल प्रलय

मान्यता है कि जल विद्युत परियोजना के लिए अलकनंदा नदी पर बांध बनाया जा रहा था। जिस वजह से श्रीनगर से लगभग 14 किमी दूर स्थित सिद्धपीठ धारी देवी का मंदिर डूब क्षेत्र में आ रहा था। परियोजना कंपनी ने धारी देवी मंदिर से प्रतिमा को अपलिफ्ट करने की ठानी।

गढ़वाल के लोगों ने इसका विरोध किया और इसे विनाशकारी भी बताया था, लेकिन कंपनी के अधिकारियों ने उनकी एक न सुनी और धारी देवी की प्रतिमा को 16 जून 2013 को अपलिफ्ट किया गया। उसी दिन केदारनाथ में जल प्रलय आ गया और सैंकड़ों लोग काल के गाल में समा गए। इस विनाशकारी आपदा के लिए गढ़वाल के लोग परियोजना कंपनी को दोषी मानते हैं और जल प्रलय धारी देवी का प्रकोप माना जाता है।

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