उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन पर हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार से मांगा जवाब
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ सोमवार को कांग्रेस ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की तरफ से पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने अनुच्छेद 356 को नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी। (पढ़ें-राज्यपाल से मिले हरीश रावत, 34 विधायकों के समर्थन की सूची सौंपी) न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ सोमवार को कांग्रेस ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की तरफ से पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने अनुच्छेद 356 को नैनीताल हाईकोर्ट में चुनौती दी। (पढ़ें-राज्यपाल से मिले हरीश रावत, 34 विधायकों के समर्थन की सूची सौंपी)
न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी की एकलपीठ ने कांग्रेस की याचिका स्वीकार की जिसके बाद आगे की सुनवाई शुरू हुई। सुबह करीब साढ़े दस बजे हाईकोर्ट में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के संबंध में कांग्रेस द्वारा दाखिल अर्जी पर सुनवाई शुरू हुई जो दोपहर करीब तीन बजे तक चली। जिसके बाद अदालत ने सुनवाई को मंगलवार के लिए टाल दिया। हाईकोर्ट ने यूनियन ऑफ़ इंडिया की तरफ से असिस्टेंट सॉलिसिटर जर्नल राकेश थपलियाल से मंगलवार तक जवाब देने को कहा है। (पढ़ें-राज्यपाल ने संभाली उत्तराखंड की कमान,कहा- ईमानदारी से काम करें अधिकारी)
उन्होंने न्यायालय को बताया की इस मामले में आर्टिकल 356 का राष्ट्रपति द्वारा गलत इस्तेमाल किया गया है। न्यायालय में सिंघवी ने मार्च 2012 में राज्य सरकार बन्ने और 18 मार्च 2016 के विधानसभा में वित्त विधेयक से अबतक के घटनाक्रम को बताया। उन्होंने न्यायालय से कहा की लोकतंत्र में धारा 356 इमरजेंसी के समय लगाई जाती है जबकि इस समय ऐसे कोई हालात नहीं हैं। उन्होंने न्यायालय से कहा की भा.ज.पा.को डर है की बर्खास्त 9 विधायकों की अनुपस्थिति में प्रदेश के 61 विधायकों पर हरीश रावत अपना बहुमत सिद्ध कर देंगे, इसलिए उन्होंने आनन फानन में राष्ट्रपति से मिलकर ऐसा कदम उठाने को कहा है। (पढ़ें-उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के खिलाफ कोर्ट जाएंगे: हरीश रावत)
उन्होंने न्यायालय से कहा की केंद्र सरकार हॉर्स ट्रेडिंग और घूसखोरी का हवाला दे रही है जबकि ये प्रीवेंशन ऑफ़ करप्शन एक्ट में दण्डनीय अपराध् है और यहाँ इसका गलत प्रचार किया जा रहा है । उन्होंने 23 मार्च को 3 बागी विधायकों के लिए मुख्यमंत्री के स्टिंग ऑपरेशन के आरोप को आधार बनाकर आर्टिकल 356 लागू करने को भी गलत बताया है। (पढ़ें-हरीश ऱावत के विश्वासमत से पहले उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू) (पढ़ें-बड़ी खबर|बागी विधायकों ने किया हरीश रावत का स्टिंग)
उन्होंने न्यायमूर्ति के सामने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के लैटर हैड पर भा.ज.पा.के विधायकों के साथ बागी 9 विधायकों के हस्ताक्षर वाला राज्यपाल को दिए ज्ञापन में हस्ताक्षर का मामला भी रखा। उन्होंने न्यायालय के सामने बागी विधायकों के स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति लेने के मामले को भी रखा। अभिषेक मनु सिंघवी ने उक्त राज्यों के उदाहरण देते हुए कहा की वहां सभी ने लोकतंत्र को बचाने के लिए देश के संविधान का सहारा लिया और विधायकों के फ्लोर टेस्ट की मांग की है। उन्होंने अन्त में आज शाम या मंगलवार को फ्लोर टेस्ट कराने की मांग की है। (पढ़ें-CM रावत ने स्टिंग को बताया फर्जी, बागियों पर साधा निशाना)
इसके आलावा यूनियन ऑफ़ इंडिया की तरफ से असिस्टेंट सॉलिसिटर जर्नल राकेश थपलियाल ने न्यायालय से जवाब देने के लिए 10 दिन का समय मांगा जिसको नकारते हुए न्यायालय ने मंगलवार को सवेरे 10:15 बजे का समय तय कर दिया है। (पढ़ें-चहेतों पर सरकारी खजाना लुटा रहे थे हरीश रावत: हरक सिंह रावत)
पर हमसे जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करे , साथ ही और भी Hindi News (हिंदी समाचार ) के अपडेट के लिए हमे गूगल न्यूज़
पर फॉलो करे






